Supreme Court: जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आज (3 अक्टूबर) को जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि जेलों में बंद किसी भी कैदी के साथ उसकी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

Supreme Court: जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज (3 अक्टूबर) को जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने आदेश सुनाते हुए कहा कि जेलों में बंद किसी भी कैदी के साथ उसकी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जेल में रसोई और सफाई के काम को कैदियों की जाति के आधार पर बांटना गलत है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि सफाई का काम केवल निचली जाति के कैदियों को और खाना बनाने का काम ऊंची जाति वालों को देना आर्टिकल 15 (Article 15) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी जेलों के मैन्युअल में बदलाव करने के निर्देश दिये है।

जाति से जुड़े मामले असंवैधानिक- SC 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान सभी जातियों को एक समान अधिकार देता है। यदि जेल में ही इसका उल्लंघन होगा तो इससे कैदियों में आपसी दुश्मनी पैदा होगी। जेलों में बनाए गए इस नियम को खत्म किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि जेल नियमावली में कैदियों की जाति से जुड़े विवरण जैसे संदर्भ असंवैधानिक हैं। इसके साथ ही सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों के रजिस्टर से जाति का कॉलम ही हटा देना चाहिए। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जातीय भेदभाव के मामले को खुद से संज्ञान में लिया और सभी राज्य सरकारों को इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

3 महीने में रिपोर्ट पेश करने का आदेश 

सुप्रीम कोर्ट ने आज (3 अक्टूबर) एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद यह फैसला सुनाया है। यह फैसला सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जाति भेदभाव के खिलाफ लड़ाई रातोरात नहीं लड़ी जाती है। कोर्ट ने कहा कि वह जेलों में ऐसे भेदभाव के मामलों पर खुद संज्ञान लेती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह तीन महीने बाद जेलों के अंदर भेदभाव मामले सूचीबद्ध करें और राज्य अदालत के सामने इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करें।