Navratri day 2: कैसे पड़ा ब्रह्मचारिणी का नाम, जानिए क्या है इसके पीछे की कहानी
नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के 'देवी ब्रह्मचारिणी' स्वरूप की पूजा करने का विधान है। माता के नाम से उनकी शक्तियों के का अनुमान लगाया जा सकता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी।
Navratri day 2: नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के 'देवी ब्रह्मचारिणी' स्वरूप की पूजा करने का विधान है। माता के नाम से उनकी शक्तियों के का अनुमान लगाया जा सकता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अराधना करने से आत्मविश्वास, आयु, आरोग्य, सौभाग्य, अभय आदि की प्राप्ति होती है। माता ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, मंत्र, आरती और स्वरूप के बारे में।
कैसे पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम
शास्त्रों के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न किया। उनके इसी तप के प्रतीक के रूप में नवरात्र के दूसरे दिन उनके इसी रूप की पूजा की जाती है।
माता का भोग
नवरात्र के इस दूसरे दिन मां भगवती को चीनी का भोग लगाने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि चीनी के भोग से उपासक को लंबी आयु प्राप्त होती है और वो निरोगी रहता है। साथ ही उसमें अच्छे विचारों का आगमन होता है। वहीं माता पार्वती के कठिन तप को मन में रखते हुए संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है।
पूजा की विधि
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है। सुबह शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की उपासना करें और मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के वस्त्र का उपयोग करें। माता को सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं, इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल और कमल के फूल का ही प्रयोग करें। माता को दूध से बनी चीजों का भोग अवश्य लगाएं। इसके साथ ही मन में माता के मंत्र या जयकारे लगाते रहें। इसके बाद पान-सुपारी भेंट करते हुए प्रदक्षिणा करें। फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें। घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती करें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पाठ करने के बाद सच्चे मन से माता के जयकारे लगाएं।
पूजा का लाभ
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा और व्रत करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक को शक्ति, बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है। मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी के सबसे शांत और सुंदर रूपों में से एक है।
स्तुति मंत्र
- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। - दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।