Aligarh Muslim University: AMU का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने सुनाया फैसला
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है।
Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) का अल्पसख्यंक दर्जा बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। इस मामले पर चीफ जस्टिस (chief Justice) समेत चार जजों ने एकमत में फैसला दिया है जबकि तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है। मामले पर सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला (Justice Pardiwala) एकमत हैं। वहीं, जस्टिस दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Dutta), जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा (Justice Satish Chandra Sharma) का फैसला अलग है।
अल्पसंख्यक मानने के मानदंड क्या है?- CJI
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) ने कहा कि अल्पसंख्यक मानने के मानदंड क्या है? अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन ना करे। शैक्षणिक संस्थान को रेगुलेट किया जा सकता है। धार्मिक समुदाय संस्था स्थापित कर सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अध्यक्षता में सात सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। इसका मतलब है कि आज शुक्रवार को उनका आखिरी वर्किंग डे है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विवाद का कारण
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान ने की थी। उन्होंने इसकी शुरुआत 'अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज' के रूप में की थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था। 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और फिर इसका नाम 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' (Aligarh Muslim University) रखा गया।
साल 1951-1965 में हुए संशोधनों के कारण शुरू हुआ ये विवाद
एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों के कारण ये विवाद शुरू हुआ और सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 1967 में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू एक केंद्रीय यूनिवर्सिटी (Central University) है। इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसला का अहम बिंदू यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता तय की जा सके। अदालत ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों की कोशिशों का परिणाम तो हो सकता है लेकिन इसका यह मतलब कतई भी नहीं है कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी।
2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संशोधन को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) की अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया। इसके बाद मुस्लिम समुदाय ने देशभर में जमकर विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन किया गया। साल 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम (AMU Amendment Act) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। केंद्र सरकार ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले को चुनौती दी। फिर 2016 में केंद्र ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है। साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था। जिस पर आज (8 नवंबर) को फैसला आया है।