Chhath Pooja 2024: छठ पूजा के व्रत में जरुर शामिल करें ये 5 चीजें वरना नहीं होगी पूजा सफल
छठ पूजा का यह व्रत काफी कठिन होता है क्योंकि इस व्रत में 18 घंटे या उससे अधिक समय तक निर्जला व्रत रखना होता है। निर्जला व्रत यानी कि व्रत रखने वाले को अन्न और जल ग्रहण नहीं करना है।अगर आप पहली बार व्रत रख रहे है तो आपको बता दें कि छठ पूजा की सामग्री और नियम अन्य व्रतों से काफी अलग हैं।
Chhath Pooja 2024: देशभर में आज से छठ पूजा की शुरू हो गयी है। इस दिन छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय है। छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता की पूजा करते हैं। बता दें कि छठ पूजा का यह व्रत काफी कठिन होता है क्योंकि इस व्रत में 18 घंटे या उससे अधिक समय तक निर्जला व्रत रखना होता है। निर्जला व्रत यानी कि व्रत रखने वाले को अन्न और जल ग्रहण नहीं करना है।अगर आप पहली बार व्रत रख रहे है तो आपको बता दें कि छठ पूजा की सामग्री और नियम अन्य व्रतों से काफी अलग होते हैं। इस व्रत में इस्तेमाल होने वाली 5 ऐसी चीजें हैं, जिनके बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है। और यदि आप ये काम नहीं करते हैं तो आपकी छठ पूजा निष्फल हो सकती है।
इन चीजों के बिना अधूरी है छठ पूजा
लौकी, चने की दाल और चावल
छठ पूजा का प्रारंभ नहाय खाय से होता है। जिसके लिए पहले दिन लौकी, चने की दाल और चावल बहुत महत्वपूर्ण होता है। व्रत रखने वाले को नहाय खाय के दिन दाल-चावल का भोजन में ही ग्रहण करना होता है।
नारियल और सूप
छठ पूजा में नारियल और सूप का होना अनिवार्य होता है। इसके बिना सूर्य देव को अर्घ्य नहीं दिया जा सकता है। बता दें कि सूर्य देव को जब अर्घ्य देते हैं तो सूप में ही नारियल और अन्य सामग्री रखकर जल से अर्घ्य दिया जाता हैं।
ठेकुआ और केला
छठ पूजा के प्रसाद का मुख्य हिस्सा ठेकुआ होता है। जो काफी प्रसिद्ध होता है। कहते हैं कि प्रसाद में ठेकुआ का होना जरूरी है। यह प्रसाद खरना के दिन बनाते हैं। साथ ही छठ पूजा में केला भी जरूर रखते हैं।
पीला सिंदूर या भाखरा सिंदूर
छठ पूजा में व्रती सुहागन महिलाएं पीला सिंदूर जरूर लगाती हैं। आपको बता दें कि पीले सिंदूर को भाखरा सिंदूर भी कहते हैं। सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, इस वजह से महिलाएं हर व्रत और त्योहार में पीला सिंदूर लगाती हैं।
सूर्य को अर्ध्य
छठ पूजा में सूर्य को अर्ध्य देना बेहद महत्वपूर्ण है। इसके बिना आपकी यह पूजा पूर्ण नहीं हो सकती। बता दें कि खरना के अगले दिन डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और उसके अगली सुबह उगते सूर्य को अर्ध्य देकर पारण करते हैं। इसके बाद ही यह व्रत पूर्ण होता है।