Gauri Sawant: कौन है गौरी सांवत, जिन्होंने लड़ी थी तीसरे लिंग को आधार कार्ड देने की लड़ाई लड़ी

किन्नर जिन्हें लोग काफी हीन भावना से देखते थे लेकिन आज ऐसा समय आ गया है जब लोग किन्नर देश में काफी तरक्की कर रहे है। पढ़ाई लिखाई से लेकर सोशल मीडिया पर हर तरफ किन्नर काफी आगे बढ़ रहे है। आज हम ऐसी ही एक ट्रांसजेंडर के बारे में बात करेंगे। 

Gauri Sawant: कौन है गौरी सांवत, जिन्होंने लड़ी थी तीसरे लिंग को आधार कार्ड देने की लड़ाई लड़ी

Gauri Sawant : किन्नर जिन्हें लोग काफी हीन भावना से देखते थे लेकिन आज ऐसा समय आ गया है जब लोग किन्नर देश में काफी तरक्की कर रहे है। पढ़ाई लिखाई से लेकर सोशल मीडिया पर हर तरफ किन्नर काफी आगे बढ़ रहे है। आज हम ऐसी ही एक ट्रांसजेंडर के बारे में बात करेंगे। 

गौरी सावंत

एक्टिविस्ट ट्रांसजेंडर गौरी सावंत ने ट्रांसजेंडर्स को सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है। एक किन्नर को मां का दर्जा दिलाने के लिए वो कानून के आगे अड़ गई थीं। उन्होंने अपने दम पर इस सोसाइटी में अपनी एक पहचान बनाई है। गौरी सांवत पर एक वेबसीरीज भी बन चुकी है जिसका नाम है ताली(taali movie)।इसमें एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (sushmita sen)ने गौरी सावंत का रोल प्ले किया था। लेकिन गौरी सावंत की कहानी रील से कहीं ज्यादा दर्दनाक है। 

एक लड़के के रूप में हुआ था गौरी का जन्म

ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत का जन्म एक लड़के के रूप में हुआ था। पुणे के भवानीपीठ में वो गणेश सावंत के रूप में पैदा हुई थीं।गौरी के माता-पिता एक लड़का होने की ख़ुशी में झूम उठे थे।लेकिन समय के साथ गौरी को अहसास हुआ कि वो एक गलत शरीर में हैं। उन्हें खुद से नफरत होने लगी थी। गौरी के फिजिकल फीचर लड़कों की तरह थे, लेकिन हाव-भाव लड़कियों की तरह।जिसके लिए उन्हें लोगों के तानों का शिकार होना पड़ा।

‘बड़ा होकर मां बनना चाहता हूं’

गौरी जब गणेश के रूप में 10 साल की थीं तब एक दिन उनके मामा ने पूछा कि तुम बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो।गणेश ने कहा मैं मां बड़ा होकर मां बनना चाहता हूं।गणेश के इस बात पर मामा और आसपास मौजूद लोग हंस पड़े और कहा कि, वो एक लड़का हैं और मां नहीं बन सकता।.ये बात सुनकर 10 साल की गौरी को बहुत दुःख पहुंचा था।अपनों के तानों ने तोड़ कर रख दिया था

गौरी के पिता पुलिस में थे।पिता के ट्रांसफर के बाद पूरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया।.गौरी अब नयी जगह आ गईं थी।पिता ने नये स्कूल में उनका एडमिशन कर दिया।स्कूल की एक टीचर ने पिता से कहा कि गौरी में लड़कियों जैसे गुण हैं। इसके बाद उनके पिता ने बिना कुछ कहे दूरियां बनानी शुरू कर दी।पिता का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उन्होंने गौरी को हिजड़ों की तरह बात करने वाला तक बोल डाला।शायद समाज के ताने एक बार फिर भी गौरी कड़वा घूंट समझकर पी जाती, लेकिन अपनों के तानों ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया था। 

जब पिता ने किया गौरी का अंतिम संस्कार

अपनी सेक्सुएलिटी के बारे में पिता से बात न कर पाने की वजह से गौरी ने 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था।उनके घर छोड़ देने के बाद पिता ने उनका जीते जी अंतिम संस्कार कर दिया। 

जब दुनिया के सामने खुद को ‘ट्रांसजेंडर’ घोषित किया

परिवार का साथ छोड़ने के बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर के हक के लिए लड़ना शुरू कर दिया। शुरुआत में वो हमसफर ट्रस्ट के साथ जुड़ी। यहां काम करते हुए गौरी ने अपनी पहचान दुनिया के सामने रखने का फैसला किया और खुद को एक ‘ट्रांसजेंडर’ घोषित कर दिया।इसके बाद, उन्होंने अपना एनजीओ शुरु किया, जिसका नाम ऱखा 'सखी चार चौगी'।इस एनजीओ के तहत, वो घर से भागे हुए ट्रांसजेंडर्स की मदद करती हैं। उन्हें सहारा देती हैं।

बच्ची को गोद लेने के लिए किया संघर्ष

काम के दौरान, गौरी की मुलाकात एक सेक्स वर्कर से हुई, वो एचआईवी संक्रमित और गर्भवती थी।उसने एक बच्ची गायत्री को जन्म दिया। कुछ सालों बाद उस महिला की मौत हो गई। गौरी बच्ची को अपने साथ लेकर आईं, उन्होंने गायत्री को गोद लेने की अर्जी कोर्ट में डाल दी, लेकिन कोर्ट के मना करने के बाद भी उन्होंने गायत्री को अपने साथ ही रखा। साल 2014 में, वह ट्रांसजेंडर्स के गोद लेने के अधिकारों के लिए सुप्रीम में याचिका दायर करने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनीं।

तीसरे लिंग को आधार कार्ड देने की लड़ाई लड़ी

धारा 377 का विरोध करने समेत उन्होंने तीसरे लिंग को आधार कार्ड देने की लड़ाई लड़ी।.गौरी ने 2009 में ट्रांसजेंडर्स को मान्यता दिलाने के लिए कोर्ट में पहला हलफ़नामा दाखिल किया था।इस याचिका की सुनवाई के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को कानूनी पहचान दी। 

पहली ट्रांसजेडर इलेक्शन ऐंबैसडर बनीं गौरी

साल 2019 के चुनाव में, महाराष्ट्र में राज्य चुनाव आयोग की देश की पहली ट्रांसजेडर इलेक्शन ऐंबैसडर को अपनी टीम में शामिल किया था. आयोग ने सोशल ऐक्टिविस्ट गौरी सावंत को आम वोटर्स को मतदान के लिए जागरुक करने की ज़िम्मेदारी दी जो अपने आप में एक बड़ा और प्रशंसनीय फ़ैसला था।