Bulldozer action: बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कहा- अधिकारी जज नहीं बन सकते, मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर) को बुलडोजर एक्शन पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी जज नहीं बन सकते। वे ये तय न करें कि दोषी कौन है। अधिकारियों को अपने अधिकारों को गलत तरीके से इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
Bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार (13 नवंबर) को बुलडोजर एक्शन (bulldozer action) पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी जज नहीं बन सकते। वे ये तय न करें कि दोषी कौन है। अधिकारियों को अपने अधिकारों को गलत तरीके से इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 15 गाइडलाइंस भी जारी की हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर को सुरक्षित रख लिया था फैसला
जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) और जस्टिस केवी विश्वनाथन (Justice KV Vishwanathan) की पीठ ने बुलडोजर एक्शन मामले (bulldozer action case) पर बुधवार को फैसला सुनाया। इससे पहले 1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सरकार ने आरोपियों के घर बुलडोजर से तोड़ दिए थे। इस बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिनमें प्रॉपर्टी तोड़ने को लेकर गाइडलाइंस बनाने की मांग की गई थी।
आरोपी या दोषी का घर नहीं गिराया जा सकता
बुलडोजर एक्शन (bulldozer action) पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आरोपी या दोषी का घर नहीं गिराया जा सकता है, यह किसी भी कीमत पर कुबूल नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 'अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस सपने में हर कोई जीता है। इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सख्त लहजे में कहा कि इस मामले में मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकते। बगैर सुनवाई आरोपी को दोषी करार नहीं दिया जा सकता है। जस्टिस गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अपना घर पाने की चाहत हर दिल में होती है। हिंदी के मशहूर कवि प्रदीप ने इसे इस प्रकार से बताया है। घर सुरक्षा परिवार की सामूहिक उम्मीद है। क्या कार्यपालिका को किसी आरोपी व्यक्ति के परिवार की सुरक्षा छीनने की अनुमति दी जा सकती है? यह हमारे सामने एक बड़ा सवाल है।
घर केवल एक संपत्ति नहीं है- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले का दायरा सीमित है, मुद्दा यह है कि क्या किसी अपराध के आरोपी या दोषी होने पर संपत्ति को गिराया जा सकता है? घर केवल एक संपत्ति नहीं है, बल्कि सुरक्षा के लिए परिवार की सामूहिक उम्मीद का प्रतीक है।
महिलाओं और बच्चों को रातों-रात उनके घर से बाहर फेंका जाना दुखद'
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नागरिकों के मन में डर को दूर करने के लिए हमें अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी करना आवश्यक लगता है। हमारा मानना है कि जहां भी ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया गया है, वहां भी नोटिस को चुनौती देने के लिए लोगों को समय दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही वैकल्पिक आश्रय की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि महिलाओं, बच्चों को रातों-रात बाहर फेंका जाना दुखद है। अगर अनाधिकृत संरचना सार्वजनिक सड़क, रेलवे लाइन या जल निकाय पर है या कोर्ट द्वारा आदेशित की गई है, तो ये दिशानिर्देश उनपर लागू नहीं होंगे।
प्रापर्टी के मालिक को नोटिस देना जरूरी
मालिक को नोटिस दिए बिना ध्वस्तीकरण नहीं किया जा सकता है। संरचना पर नोटिस भी प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि 15 दिन की कारण बताओ नोटिस जारी की जानी चाहिए। इसके बाद, नोटिस जारी होते ही कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट को ऑटो जेनरेटेड ईमेल भेजा जाना चाहिए, जिससे बैकडेटिंग को रोका जा सके।