इस मंदिर में बढ़ती जा रही है नंदी की प्रतिमा, श्राप का है गहरा प्रकोप
भारत में भी एक ऐसा अनोखा मंदिर देखा गया है। जहां हर 20 साल बाद नंदी की प्रतिमा बढ़ती जा रही है। यहां तक कि एक-एक कर मंदिर के खंभों को भी हटाना पड़ रहा है। आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित इस मंदिर का नाम है श्री यंगती उमा महेश्वरा मंदिर।
सावन(Sawan) में आपने शिव जी के ऐसे कई मंदिरों के बारे में सुना होगा। जिनकी अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि अगर आप सावन में इन खास मंदिरों के दर्शन करते हैं तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। कहा जाता है कि जब तक शिव जी के प्रिय वाहन नंदी अनुमति नहीं देते हैं भोले बाबा के दर्शन नहीं मिलते। यही वजह है कि शिव मंदिर बड़ा हो या छोटा, हर जगह गर्भगृह के बाहर नंदी की प्रतिमा होती ही है। भारत में भी एक ऐसा अनोखा मंदिर देखा गया है। जहां हर 20 साल बाद नंदी की प्रतिमा बढ़ती जा रही है। यहां तक कि एक-एक कर मंदिर के खंभों को भी हटाना पड़ रहा है। आंध्र प्रदेश के कुरनूल (Kurnool, Andhra Pradesh) में स्थित इस मंदिर का नाम है श्री यंगती उमा महेश्वरा मंदिर (Sri Yangati Uma Maheshwara Temple)।
जाने मंदिर के इतिहास के बारें में
आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित इस मंदिर का नाम है श्री यंगती उमा महेश्वरा मंदिर। बता दें कि इस अनोखे मंदिर में हर 20 साल में नंदी का आकार बढ़ता ही जा रहा है। वहीं बढ़ते आकार की वजह से रास्ते में पड़ रहे कुछ खंबों को हटाना पड़ गया है। एक-एक करके यहां नंदी के आसपास स्थित कई खंबों को हटाना पड़ा है। बता दें कि इस मंदिर का निर्माण वैष्णव परंपराओं के अनुसार किया गया है। इसे 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय के द्वारा बनवाया गया है। यह मंदिर हैदराबाद (Hyderabad) से 308 किमी और विजयवाड़ा (vijayawada) से 359 किमी दूर स्थित है।
मंदिर पर है श्राप का प्रकोप
इस शिव मंदिर (Shiv Temple) की स्थापना अगसत्य ऋषि ने की थी। हालांकि, ऋषि इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनवाना चाहते थे मगर स्थापना के दौरान मूर्ति का अंगूठा टूट गया। मूर्ति खंडित होने की वजह से मंदिर की स्थापना भी रुक गई। फिर ऋषि ने भगवान शिव की अराधना की जिसके बाद प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि, यह स्थान कैलाश जैसा दिखता है, इसलिए यहां शिव मंदिर बनाना उचित है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर में जब अगसत्य ऋषि तप कर रहे थे, तब कौए उन्हें परेशान कर रहे थे। नाराज होकर ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि वे यहां कभी नहीं आ सकेंगे। कौए शनि देव का वाहन है। इसलिए यहां शनि देव का वास नहीं होता है।