जानें आखिर ब्राह्मणों की किस गलती की वजह से शुक्राचार्य ने दिया था उन्हें श्राप
हिंदू धर्म में शराब, मांस का सेवन राक्षसी प्रवृत्ति माना गया है। धार्मिक शास्त्रों और पौराणिक कथाओं के अनुसार शराब पीना सबसे बड़ा पाप माना गया है
हिंदू धर्म में शराब, मांस का सेवन राक्षसी प्रवृत्ति माना गया है। धार्मिक शास्त्रों और पौराणिक कथाओं के अनुसार शराब पीना सबसे बड़ा पाप माना गया है, वही शराब पीना तामसिक पदार्थ माना गया है। इस लिए शराब के सेवन के बाद व्यक्ति अपने होशो-हवास में नहीं रहता है साथ ही अध्यात्म से परे रहता है। मान्यता है, कि शराब पीने से ब्राह्मणों को ब्रह्म हत्या का पाप लगता है, जिसका संबंध शुक्राचार्य और कच की एक पौराणिक कथा है। जिसका वर्णन महाभारत और मत्स्य पुराण में भी किया गया है।
पौराणिक कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार पूर्वकाल में त्रिलोक को जीतने के लिए देवताओं और दानवों के बीच में युद्ध हुआ था। जिसमें मारे जाने वाले राक्षसों को उनके गुरु शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या से जीवित कर देते, लेकिन देव गुरु बृहस्पति के पास ये विद्या नहीं होने के कारण उन्हें युद्ध में भारी नुकसान हुआ। जिससे देवताओं की प्रार्थना पर गुरु बृहस्पति ने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने भेजा। जहां एक हजार वर्षों तक ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर कच ने शुक्राचार्य और उनकी बेटी देवयानी की खूब सेवा की।
इसी बीच राक्षसों को जब कच के संजीवनी विद्या सीखने की बात मालूम हुई तो, उन्होंने दो बार उसकी हत्या कर दी। लेकिन दोनों ही बार देवयानी के कहने पर शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या से उसे जीवित कर दिया। ऐसे में राक्षसों ने तीसरी बार कच की हत्या कर उसके शरीर को आग में जलाकर उसकी भस्म शराब में मिलाकर शुक्राचार्य को ही पिला दी। जब कच कहीं नहीं दिखा तो देवयानी के कहने पर शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या से फिर उसका आह्वान किया।
ऐसे में कच ने शुक्राचार्य के पेट से ही आवाज लगाई जिसके बाद शुक्राचार्य ने पेट में ही मृत संजीवनी की पूरी विद्या सिखाकर कच को पेट फाड़कर बाहर निकलने और मरने पर संजीवनी विद्या से उन्हें वापस जीवित करने की बात कही। कच ने फिर ऐसा ही किया, पेट फाड़कर बाहर निकल उसने शुक्राचार्य को वापस जीवित कर दिया।
शुक्राचार्य का श्राप
जब शुक्राचार्य जीवित हुए तो उन्होंने कच का वध करने वाले राक्षसों पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने शराब को कच को मुख्य दोषी माना। शुक्राचार्य ने उसी समय शराब का सेवन न करने का संकल्प लिया और श्राप दिया कि जो भी ब्राह्मण शराब को सेवन करेगा वह ब्रह्म हत्या का दोषी माना जाएगा। उसी समय से शराब ब्राह्मणों के लिए निषेध की गई है।