Temple of Japan: जापान का एक अनोखा मंदिर, जहां होता है तलाक का फैसला! जानिए क्या है इसका इतिहास
दुनिया भर में हजारों मंदिर हैं और हर मंदिर कि अपनी एक अनोखी कहानी और महत्व है। कुछ मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं, तो कुछ अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए। भारत में देवी-देवताओं को समर्पित ढेरों मंदिर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा मंदिर भी है जो अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है?
Temple of Japan: दुनिया भर में हजारों मंदिर हैं और हर मंदिर कि अपनी एक अनोखी कहानी और महत्व है। कुछ मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं, तो कुछ अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए। भारत में देवी-देवताओं को समर्पित ढेरों मंदिर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा मंदिर भी है जो अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है? आमतौर पर, मंदिरों में लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने और आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं, लेकिन जापान में एक ऐसा मंदिर है, जिसे तलाक मंदिर के नाम से जाना जाता है। आइए जानें इसके बारे में।
महिलाओं के लिए एक आश्रय स्थल
ये मंदिर उन महिलाओं के लिए एक आश्रय स्थल है जो घरेलू हिंसा या अत्याचार का शिकार हुईं हैं। कहा जाता है कि सदियों पहले, जब जापान में महिलाओं के अधिकार बहुत कम थे, तब इस मंदिर की स्थापना की गई थी। यहां आकर महिलाएं न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक होती थीं, बल्कि उन्हें सोशल सपोर्ट भी मिलता था। आज भी ये मंदिर महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है।
घरेलू हिंसा से महिलाओं की मुक्ति का मंदिर
एक समय था, जब जापान (Japan) में महिलाओं के पास कोई अधिकार नहीं थे और पुरुष अपनी पत्नियों को आसानी से तलाक दे सकते थे, इस मंदिर ने घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को आश्रय दिया। मंदिर के दरवाजे पर हर उस महिला के लिए खुले थे जो अपने पति की क्रूरता से भाग रही थी। यहां आकर उन्हें न केवल शारीरिक सुरक्षा मिलती थी बल्कि, एक ऐसा माहौल भी मिलता था। जहां वे आध्यात्मिक शांति और सांत्वना पा सकती थीं। ये मंदिर आज भी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो किसी भी तरह के अत्याचार का सामना कर रही हैं।
700 साल पुराना है ये मंदिर
जापान (Japan) के कामाकुरा शहर (Kamakura city) में स्थित ये एक अनोखा मंदिर है, जिसका इतिहास लगभग 700 साल पुराना है। इस मंदिर को 'तलाक मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बौद्ध नन काकुसन ने अपने पति होजो टोकीमून के साथ मिलकर करवाया था। उस समय महिलाओं के पास बहुत कम अधिकार थे और वे अपने पतियों से तलाक लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थीं। काकुसन खुद भी एक ऐसे ही दुखद विवाह में फंसी हुई थीं। इसलिए उन्होंने एक ऐसा स्थान बनाने का फैसला किया जहां महिलाएं अपने पतियों से अलग होकर शांति से रह सकें।
आत्मनिर्भर होती थी महिलाएं
इस मंदिर में महिलाएं अपने पतियों को तलाक देने के लिए तीन साल तक रह सकती थीं। बाद में इस अवधि को घटाकर दो साल कर दिया गया। यहां रहकर महिलाएं न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होती थीं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मौका भी मिलता था। कई सालों तक इस मंदिर में केवल महिलाओं को ही प्रवेश दिया जाता था। लेकिन 1902 में जब एंगाकु-जी ने इस मंदिर पर कब्जा किया, तो यहां पुरुष मठाधीश को नियुक्त किया गया और पुरुषों को भी प्रवेश मिलने लगा।