Republic Day Interesting Facts: जानें गणतंत्र दिवस के पीछे का इतिहास, आखिर 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ?

26 जनवरी 1950 को ही देश का संविधान लागू हुआ और तबसे देश इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता आया है। लेकिन पहले इस दिन को संवतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की बात कांग्रेस ने अपने लाहौर सत्र के दौरान ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वराज के रूप में नामित किया था।

Republic Day Interesting Facts: जानें गणतंत्र दिवस के पीछे का इतिहास, आखिर 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ?

Republic Day Interesting Facts: साल 1930 को आज ही के दिन संविधान लागू किया गया था इसीलिए हर साल 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन पहले इस दिन को संवतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की बात कांग्रेस ने अपने लाहौर सत्र के दौरान ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वराज के रूप में नामित किया था, जिसमें सभी भारतीयों से इसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया गया था। इस सत्र के दौरान पहली बार तिरंगा फहराया गया था। इसी के बीस साल बाद, 26 जनवरी 1950 को ही देश का संविधान लागू हुआ और तबसे देश इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता आया है।

ऐसे बना था संविधान 

संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी। हालांकि 9 दिसम्बर, 1946 को हुई संविधान सभा की पहली बैठक में केवल 211 सदस्यों ने ही हिस्सा लिया। सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया था जिसके बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसी के साथ डॉ. एच.सी. मुखर्जी और टी. टी. कृष्णामचारी सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए ।

प्रारुप समिति

1947 में भारतीय संविधान सभा ने भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए प्रारूप समिति का गठन किया था। अंबेडकर की अध्यक्षता वाली इस समिति में 8 सदस्य थे। जिनमें ए. कृष्णास्वामी अयंगर, एन. गोपालस्वामी, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, एन. माधवराज, टीटी. कृष्णामाचारी और मोहम्मद सादुल्ला शामिल थे। संविधान सभा ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में कुल 166 बैठकें की। 

क्या होता है संविधान

संविधान किसी देश की सर्वोच्च विधि होती है जिसके माध्यम से उस देश का शासन-प्रशासन संचालित किया जाता है। संविधान की सर्वोच्चता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संविधान देश में उपस्थित अन्य कानूनों, नियमों, विनियमों की तुलना में प्राथमिक होता है। जिसका मतलब है कि अगर किसी कानून या नियम आदि की व्याख्या को लेकर कोई भी असमंजस पैदा होता है तो इस स्थिति में संविधान में उल्लिखित बात को महत्त्व दिया जाता है और संविधान का उल्लंघन करने वाली किसी भी अन्य विधि को खारिज कर दिया जाता है। 

अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन 

देश का संविधान अन्य विधियों से इस तरह अलग होता है कि संविधान का निर्माण एक समर्पित संविधान सभा द्वारा किया गया है। संविधान निर्माण की शक्ति देश की विधायिका के पास नहीं होती है। भारतीय संविधान में संशोधन करने की शक्ति सिर्फ भारतीय संसद के पास है। राज्यों की विधायिकाएं संविधान में संशोधन नहीं कर सकती हैं। भारतीय संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रदान की गई है।

भारत का संविधान

भारत में साल 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी। जिसके बाद 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ। 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हुआ, इसीलिए उसके शासन संचालन के लिए भी संविधान सभा ने विधायिका के तौर पर भी कार्य किया। 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान अंगीकृत कर लिया गया था तथा उसके कुछ प्रावधान उसी दिन लागू कर दिए गए थे।

कई देशों के संविधान से प्रेरित है

भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत का संविधान निर्मित करते समय उस समय उपस्थित विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया और उनमें से जो काम की बातें भारतीय राजव्यवस्था के लिए सही थीं, उन्हें भारत की परिस्थिति के अनुरूप भारतीय संविधान में शामिल कर लिया गया। इस आधार पर विभिन्न विद्वान भारतीय संविधान को उधार का संविधान कहते हैं, लेकिन ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि भारतीय संविधान निर्माताओं ने अन्य देशों के संवैधानिक प्रावधानों को हू-ब-हू नहीं, बल्कि भारत की परिस्थिति के अनुरूप भारतीय संविधान में शामिल किया था। 

1935 के एक्ट से लिया गया है अधिकांश हिस्सा

भारतीय संविधान का अधिकांश हिस्सा 1935 के भारत शासन अधिनियम से लिया गया है। इसके अलावा, भारतीय संविधान निर्माताओं ने कुछ अन्य देशों के संविधान से भी कुछ प्रावधान अपनाए हैं।

भारतीय संविधान के स्रोत

भारत शासन अधिनियम, 1935 : संघात्मक व्यवस्था, न्यायपालिका का ढांचा, लोक सेवा आयोग, राज्यपाल का कार्यकाल, आपातकालीन उपबंध इत्यादि।

ब्रिटिश संविधान: संसदीय व्यवस्था, एकल नागरिकता, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनीय व्यवस्था, विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया, विधायी प्रक्रिया, मंत्रिमंडलीय प्रणाली

अमेरिकी संविधान: न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मूल अधिकार, राष्ट्रपति पर महाभियोग, यथोचित विधि प्रक्रिया, उपराष्ट्रपति का पद, न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धांत इत्यादि।

फ्रांस का संविधान: स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श, गणतंत्रात्मक स्वरूप।

भूतपूर्व सोवियत संघ का संविधान: मूल कर्तव्य और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का दर्शन।

आयरलैंड का संविधान: राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन, राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति 

ऑस्ट्रेलिया का संविधान : संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान, समवर्ती सूची का उपबंध, व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता का उपबंध

भारतीय संविधान की विशेषता

भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा संविधान है। भारतीय संविधान एकात्मक और संघात्मक दोनों व्यवस्थाओं का मिश्रण है। ‘एकात्मक व्यवस्था’ का सामान्य मतलब है कि देश की राजव्यवस्था के संचालन में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आदेश का पालन संपूर्ण देश में किया जाएगा और ‘संघात्मक व्यवस्था’ से आशय है केंद्र के साथ-साथ विभिन्न राज्य विधायकाएं मिलकर देश की राजव्यवस्था के संबंध में निर्णय करेंगी। भारत में शासन व्यवस्था के संचालन की ‘संसदीय प्रणाली’ को अपनाया गया है। संसदीय प्रणाली का विचार भारत में ब्रिटिश राजव्यवस्था से लिया गया है।

भाग, अनुसूची और अनुच्छेद

26 जनवरी, 1950 को जब संविधान लागू हुआ था, तो उसमें 22 भाग, 8 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद थे। हालांकि समय के साथ भारतीय संसद द्वारा इसमें संशोधन किए जाते रहे और वर्तमान में भारतीय संविधान में कुल 25 भाग, 12 अनुसूचियाँ और 395 अनुच्छेद हैं। संशोधन के बाद जोड़े गए नए अनुच्छेदों को उपखंडों के रूप में शामिल किया गया है। 

भाग-1 :  संघ और उसका राज्यक्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)

भाग-2: नागरिकता (अनुच्छेद 5-11)

भाग-3: मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35)

भाग-4: राज्य के नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36-51)

भाग-5: संघ (अनुच्छेद 52-151)

भाग-6: राज्य (अनुच्छेद 152-237)

भाग-8: संघ राज्य क्षेत्र (अनुच्छेद 239-242)

भाग-9: पंचायतें (अनुच्छेद 243-243 ण)

भाग-9 क: नगरपालिकाएँ (अनुच्छेद 243 त – 243 य छ)

भाग-9 ख : सहकारी समितियाँ (अनुच्छेद 243 य ज – 243 य न)

भाग-10: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र (अनुच्छेद 244-244 क)

भाग-11: संघ और राज्यों के बीच संबंध (अनुच्छेद 243-263)

भाग-12: वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद (अनुच्छेद 264-300 क)

भाग-13: भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य एवं समागम (अनुच्छेद 301-307)

भाग-14: संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ (अनुच्छेद 308-323)

भाग-14 क: अधिकरण (अनुच्छेद 323 क – 323 ख)

भाग-15: निर्वाचन (अनुच्छेद 324-329 क)

भाग-16: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों एवं आंग्ल-भारतीयों के संबंध में विशेष उपबंध (अनुच्छेद 330-342)

भाग-17: राजभाषा (अनुच्छेद 343-351)

भाग-18: आपात उपबंध (अनुच्छेद 352-360)

भाग-19: प्रकीर्ण (अनुच्छेद 361-367)

भाग-20: संविधान का संशोधन (अनुच्छेद 368)

भाग-21: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध (अनुच्छेद 369-392)

भाग-22: संक्षिप्त नाम, प्रारंभ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन (अनुच्छेद 393-395)

अनुसूचियां

मूल संविधान में तो 8 अनुसूचियां उपस्थित थीं, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई है। 

अनुसूची-1: राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों का विवरण

अनुसूची-2 : विभिन्न पदाधिकारियों के वेतन, भत्तों व पेंशन से जुड़े प्रावधान

अनुसूची-3 : विभिन्न पदाधिकारियों व प्रत्याशियों द्वारा ली जाने वाली शपथों व प्रतिज्ञानों के प्रारूप

अनुसूची-4 : राज्यों व संघ राज्यक्षेत्रों के लिए राज्यसभा में सीटों का आवंटन

अनुसूची-5 : अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन तथा नियंत्रण से संबंधित प्रावधान

अनुसूची-6 : असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित उपबंध

अनुसूची-7 : संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची तथा इन सूचियों में शामिल विषय

अनुसूची-8 : भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची (वर्तमान में इस सूची में कुल 22 भाषाएं शामिल हैं।

अनुसूची-9 : न्यायिक पुनर्विलोकन से सुरक्षा प्राप्त विधियों की सूची (इसे पहले संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया था।

अनुसूची-10 : दल बदल विरोधी कानून से संबंधित उपबंध (इसे भारतीय संविधान में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से शामिल किया गया था।

अनुसूची-11 : पंचायतों की शक्तियों व ज़िम्मेदारियों से संबंधित प्रावधान (इसे भारतीय संविधान में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा शामिल किया गया था।

अनुसूची-12 : नगरपालिकाओं की शक्तियों व ज़िम्मेदारियों से संबंधित प्रावधान (इसे भारतीय संविधान में 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा शामिल किया गया था।

संविधान की प्रस्तावना

प्रस्तावना संविधान के परिचय अथवा भूमिका को कहते हैं भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित नेहरू द्वारा पेश किये गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है। प्रस्तावना, भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाई चारे को बढावा देती है। संविधान की प्रस्तावना को सिर्फ एक बार संशोधित किया गया है। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा इसमें समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को सम्मिलित किया गया।

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, 
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, 
प्रतिष्ठा और अवसर की समता 
प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता 
तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली 
बंधुता बढ़ाने के लिये 
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”