Rang Community: पीएम मोदी जिस रं जनजाति के गांव पहुंचे, आखिर वो कौन हैं , जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आज उत्तरखंड के दौरे पर हैं। यहां वो रं समाज के लोगों से मिलने पहुंचे, रं समाज के लोगों ने पीएम मोदी का ढोल नगाड़ों से स्वागत किया। इस समुदाय के लोग न सिर्फ अपनी कला, संस्कृति और बोली को संजोए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, बल्कि इनका परस्पर सहयोग और सामाजिक सहभागिता हर समाज के लिए प्रेरणादायक है।
Rang Community: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आज उत्तरखंड के दौरे पर हैं। यहां वो रं जनजाति के लोगों से मिलने उनके गांव गुंजी पहुंचे, गांव पहुंचने पर रं समाज के लोगों ने पीएम मोदी का ढोल नगाड़ों से स्वागत किया। इससे पहले प्रधानमंत्री ने मन की बात में इस समुदाय की चर्चा की थी। उन्होंने कहा था कि रं सुमदाय के लोगों ने अपनी बोली और भाषा को बचाए रखने का प्रयास किया।क्षेत्र होने के बाद भी जिस तरह से उन्होंने अपनी पहचान को बचाए रखने का प्रयास किया निश्चित तौर पर वह अनुकरणीय है। इस समुदाय के लोग न सिर्फ अपनी कला, संस्कृति और बोली को संजोए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, बल्कि इनका परस्पर सहयोग और सामाजिक सहभागिता हर समाज के लिए प्रेरणादायक है। इतना ही नहीं ये देश की सीमा पर तैनात एक तरह से अवैतनिक प्रहरी हैं, जो सरकार के लिए आंख-कान की तरह काम करते हैं। तो चलिए जानते हैं रं समुदाय के बारे में।
रं समुदाय के लोगों मूलत: कहा रहते हैं
रं समाज चीन और नेपाल सीमा से लगे अति दुर्गम और बर्फीले क्षेत्र पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील के व्यास, दारमा, चौंदास, रालम-पातों क्षेत्र के के 39 गांवों बसे हुए हैं। चीन और नेपाल सीमा से लगे अति दुर्गम और बर्फीले क्षेत्र में रहने वाले रं समुदाय को आज सरकारी तौर पर भोटिया कहा जाता है। रं समाज के लोग अपनी कला, जीवन शैली, व्यापार, संस्कृति, लोकजीवन को लेकर अलग पहचान रखते हैं। अतीत में तिब्बत में व्यापार करने वाले रं समाज के लोगों ने वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद काफी दुर्दिन झेले हैं।
तिब्बत से व्यापार करते थे ये
इससे पहले तिब्बत व्यापार में इस समाज के लोग काफी आगे थे। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील की चार घाटियों व्यास, दारमा, चौंदास, रालम-पातों के 39 गांवों के लोग देश-दुनिया में छाए हैं। आज ये प्रशासनिक, विदेश सेवा, चिकित्सा से लेकर हर क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं। इन चार घाटियों के अलावा मित्र राष्ट्र नेपाल के छांगरू, बोतकंग रपंग, तपसौंग रपंग, गंधासौंग रपंग, दुमिलन, स्यंकंग, तिंकर आदि सात गांवों में रं समाज के लोग रहते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे रं समाज की आबादी 15 हजार के करीब है। सभी मूल गांव से जुड़ाव रखते हैं। विषम भौगोलिक परिस्थिति में जीवन जीने वाले रं लोग भारत चीन युद्ध के बाद आजीविका विहीन हो गए थे, लेकिन समाज के लोगों ने हार नहीं मानी। शिक्षा के प्रति अपनी रूचि को बढ़ाते हुए आज वे सरकारी विभोगों में ऊंचे पदों पर तैनात हैं।
अपनी मिट्टी और संस्कृत से जुड़े
इनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि देश, विदेश में कहीं भी रहे, लेकिन अपने समाज, बोली, भाषा और लोकजीवन नहीं छोड़ते हैं ।किसी नवविवाहित जोड़े को विवाह के कुछ समय के बाद सामूहिक प्रीतिभोज के लिए गांव आते है। दूसरे गांव या शहर ब्याही गई बेटी मैती यानी ईष्ट देव की पूजा के लिए मायके जरूर आती है। रं समाज में बुढानी संस्कार का भी बड़ा महत्व है। बुढानी सभा के लिए बच्चे को मूल गांव लाया जाता है। इसके अलावा ग्राम देवता और घाटी के देवता की पूजा के लिए साल-दो साल के अंतराल पर ये अपने गांव लौटते ही है। इस समुदाय के लोगों नेअपने परंपरागत पहनावे, बोली को भी संजोकर रखा है।