SHUATS NEWS: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुआट्स वीसी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से किया इंकार, दिया सरेंडर करने का आदेश
याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आरोपियों के वकील, और राज्य सरकार के महाधिवक्ता अजय मिश्र और शासकीय अधिवक्ता आशुतोष कुमार संड की दलीलों को सुनकर गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
SHUATS NEWS: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HighCourt) की जस्टिस राहुल चतुर्वेदी (Justice Rahul Chaturvedi) और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी (Justice Mohammad Azhar Hussain Idrisi) की पीठ ने इलाहाबाद एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी (Allahabad Agricultural University) के वीसी राजेंद्र बिहारीलाल (Professor Rajendra Biharilal) की गिरफ्तारी की याचिका पर सुनवाई की। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आरोपियों के वकील, और राज्य सरकार के महाधिवक्ता अजय मिश्र (Advocate General Ajay Mishra) और शासकीय अधिवक्ता आशुतोष कुमार संड की दलीलों को सुनकर गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
क्या है मामला
दरअसल साल 2005 में एक महिला ने शुआट्स के कुलपति (SHUATs Vice Chancellor) आरबी लाल समेत 7 लोग जिनमें रेखा पटेल, रमाकांत दुबे, विनोद बिहारी लाल, प्रो रेणु प्रसाद, डेविड फ्लिप और सुनील कुमार जॉन शामिल के खिलाफ रेप और जबरन धर्मांतरण कराने का आरोप लगाया था।
धर्म परिवर्तन के लिए किया जाता था प्रताड़ित
4 नवंबर 2023 को पीड़िता ने बेबर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। पीड़िता ने बताया कि जब वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय (Allahabad University) में स्नातक की छात्रा थी, तब उसकी मुलाकात रेखा पटेल से हुई, जो उसे चर्च ले जाने लगी। जहां उसे गिफ्ट दिए जाते थे। इसी दौरान चर्च में उसकी मुलाकात शुआट्स के कुलपति आरबी लाल से हुई। इसके बाद उसे शुआट्स बुलाया गया, जहां आरबी लाल ने उसके साथ रेप किया। यहीं नहीं इसके बाद उसे धर्म परिवर्तन के लिए भी प्रताड़ित किया जाने लगा। पीड़िता ने कहा कि उसके साथ हुए शारीरिक व मानसिक शोषण का सिलसिला लंबे समय तक जारी रहा।
कोर्ट से लगाई थी गुहार
बता दें कि शुआट्स (SHUATS) के कुलपति राजेंद्र बिहारीलाल और 7 आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि हाईकोर्ट उन सभी के खिलाफ हमीरपुर के बेवर थाने में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के साथ ही गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी।
सरेंडर करने का आदेश
इसी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुलपति आरबी लाल सहित सभी सात आरोपियों को तत्काल के लिए राहत प्रदान करते हुए 20 दिसंबर तक अदालत के सामने सरेंडर करने का निर्देश दिया है।
झूठे मुकदमे में फंसाया
आरोपियों के वकील ने कोर्ट के सामने कहा कि कि याचियों को फंसाने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज कराया गया है। घटना 2005 की है, जिसकी एफआईआर 2023 में दर्ज कराई गई। क्या इस विलंब का कोई स्पष्टीकरण है। याचियों के वकील ने कहा कि पीड़िता को 2014 में संस्थान में स्टेनोग्राफर के पद पर नियुक्ति दी गई थी, लेकिन गलत गतिविधियों के कारण 2022 में उसे बर्खास्त कर दिया गया। इसका बदला लेने के लिए उसने याचियों को झूठे मुकदमे में फंसाया है।
कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि एफआईआर से साफ होता है कि पीड़िता ने बहुत मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न सहा साथ ही उसे लंबे समय तक अपनी जुबान बंद रखने के लिए विवश भी किया गया। काफी हिम्मत जुटाने के बाद पीड़िता ने एफआईआर दर्ज कराई है। न्यायालय ने कहा कि यह एक महिला के विरुद्ध गंभीर अपराध है। ऐसे में इस स्तर पर पुलिस की विवेचना को रोकना उचित व न्याय संगत नहीं है।
90 दिन तक विवेचना का आदेश
न्यायालय ने एसपी हमीरपुर को निर्देश दिया है कि अपनी निगरानी में सीओ स्तर के तीन अधिकारियों से विवेचना 90 दिन के भीतर विवेचना पूरी कर अदालत में पुलिस रिपोर्ट दाखिल कराएं।