UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट से प्रदेश सरकार को लगा झटका, महाधिवक्ता की शक्तियों को किया बहाल

कोर्ट ने महाधिवक्ता की कार्यालय स्टाफ की नियुक्ति व अनुशासित करने वाली संशोधित नियमावली को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने महाधिवक्ता की सारी शक्तियां भी बहाल कर दी है।

UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट से प्रदेश सरकार को लगा झटका, महाधिवक्ता की शक्तियों को किया बहाल

UP News: उत्तर प्रदेश की सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने महाधिवक्ता की कार्यालय स्टाफ की नियुक्ति व अनुशासित करने वाली संशोधित नियमावली को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने महाधिवक्ता की सारी शक्तियां भी बहाल कर दी है। हालांकि, इलाहाबाद कोर्ट ने प्रदेश सरकार को संविधान सम्मत नियम बनाने की भी छूट दी है।

संशोधित नियमावली को असंवैधानिक करार दिया 

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाधिवक्ता की कार्यालय स्टाफ की नियुक्ति व अनुशासित करने शक्ति छीन कर प्रमुख सचिव विधि को सौंप दी थी। इलाहाबाद कोर्ट ने केस पर सुनवाई कर इस संशोधित नियमावली को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश दिया। उत्तर प्रदेश राज्य विधि अधिकारी मिनिस्टीरियल स्टाफ एसोसिएशन की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया।

अपर महाधिवक्ता की दलील खारिज

कोर्ट ने कहा कि सरकार का यह वैधानिक दायित्व है कि वह महाधिवक्ता पद की संवेदनशीलता व सम्मान बरकरार रखे। सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता एम सी चतुर्वेदी ने कोर्ट में दलील दी कि विधिक दायित्व निभाने में महाधिवक्ता के पास समय की कमी के कारण सरकार ने प्रमुख सचिव को स्टाफ की भलाई के लिए नियम संशोधित किया है। कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते कहा कि, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के पास समय की कमी के कारण उसकी वैधानिक शक्ति छींनी नहीं जा सकती है।

‘महाधिवक्ता के पद का प्रभाव कम करना’

याचिकाकर्ता अधिवक्ता श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था कि महाधिवक्ता एक संवैधानिक महत्वपूर्ण पद हैं। उसकी शक्ति को छीनना अनुच्छेद 165व अनुच्छेद 14का खुला उल्लंघन है। ऐसा करना महाधिवक्ता के पद का प्रभाव कम करना है। इसलिए इस संशोधित नियमावली को रद्द किया जाए। अधिवक्ता श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि, सरकार महाधिवक्ता के अधिकार कम नहीं कर सकती।

‘सेवा नियमावली बनाने का वैधानिक अधिकार’

सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश अपर महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य नियोजक है। सेवा नियमावली बनाने का उसे वैधानिक अधिकार है। इससे महाधिवक्ता के कार्यों में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इसलिए महाधिवक्ता की व्यस्तता के कारण स्टाफ को नियंत्रित करने का अधिकार प्रमुख सचिव को दिया गया है।

महाधिवक्ता एक संवैधानिक पद है- कोर्ट

इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि संविधान हर राज्य में सरकार को कानूनी सलाह देने के लिए महाधिवक्ता की नियुक्ति की व्यवस्था करता है। यह एक संवैधानिक पद हैं। वह राज्य का पहला अधिवक्ता है। उसे पदेन अधिवक्ता के खिलाफ बार काउंसिल के जरिए कार्रवाई का अधिकार है। इसके अलावा अवमानना मामले में उसे अदालती अधिकार हासिल है। वह राज्य विधि अधिकारियों का टीम लीडर हैं। महाधिवक्ता की सलाह अतिगोपनीय होती है। अक्सर राजनीतिक दबाव के बावजूद महाधिवक्ता स्वतंत्र होता है। जो सरकार को सलाह देता है। उसकी अधिकार और शक्ति छीनकर उससे अधीनस्थ अधिकारी को शक्ति देना पद की गरिमा कम करना है।  

महाधिवक्ता पर सरकार का विश्वास होता है- कोर्ट 

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, महाधिवक्ता व राज्य का संबंध वकील व मुवक्किल का होता है। उस पर सरकार का विश्वास होता है। अपने स्टाफ पर निगरानी नियंत्रण न होने से उसके पद दायित्व निभाने में रुकावट पैदा करेगा। 27 दिसंबर 2022 की संशोधित नियमावली महाधिवक्ता की प्रशासनिक नियंत्रण शक्ति को समाप्त करती है। इससे गोपनीयता भंग होगी और पद की गरिमा घटेगी। जो सही नहीं है। कोर्ट ने संशोधन नियमावली को रद्द कर दिया है।