Parikrama Niyam: देवी-देवताओं की परिक्रमा करने पर कहीं आप भी तो ये गलती नही करते,जान लें ये नियम
पूजा-पाठ करते समय भगवान की परिक्रमा करने का विधान है। ये एक अनिवार्य परंपरा है, जिसका पालन आज भी पूजा-पाठ में किया जाता है। विज्ञान की नजर से देखें तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में मंदिर परिक्रमा का विशेष महत्व है।
Parikrama Niyam: भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू की जाती है, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, इस वजह से परिक्रमा का लाभ नहीं मिल पाता है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इस कारण से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। आइयें जानते है परिक्रमा से जुड़ी खास बातें।
किस देवी देवताओं की कितनी करें परिक्रमा?
1. भागवान शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए।
2.माता दुर्गा की एक परिक्रमा करनी चाहिए।
3. हनुमानजी और गणेशजी की तीन परिक्रमा की जाती है ।
4. भगवान विष्णु की चार परिक्रमा की जाती है।
5. सूर्यदेव की चार परिक्रमा की जाती है ।
6. पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा करनी चाहिए।
कैसें करें परिक्रमा
पूजा के दौरान सच्चे मन से परिक्रमा लगानी चाहिए। घड़ी की दिशा में परिक्रमा लगानी शुभ मानी जाती है। इस दौरान भगवान का ध्यान करना चाहिए और परिक्रमा मंत्र का जाप करना चाहिए। माना जाता है कि परिक्रमा लगाने से इंसान को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और नकारत्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।
परिक्रमा का मंत्र
"यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।"
इस मंत्र का अर्थ यह निकलता है कि कभी जीवन में गलती से किए गए और पूर्वजन्मों के सभी पाप परिक्रमा के साथ-साथ खत्म हो जाए। ईश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।