Supreme Court order: जीएम फसलों का विरोध करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) को पर्यावरण में जारी करने का विरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जब तक कि सरकार द्वारा एक मजबूत नियामक प्रणाली स्थापित नहीं की जाती।
Supreme Court order: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) को पर्यावरण में जारी करने का विरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जब तक कि सरकार द्वारा एक मजबूत नियामक प्रणाली स्थापित नहीं की जाती।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता, केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ कानून अधिकारियों और याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठनों और पर्यावरणविदों के लिए वकील प्रशांत भूषण वर वरिष्ठ वकील संजय पारिख द्वारा दी गई मौखिक दलीलें सुनीं।
सुनवाई के दौरान एसजी मेहता ने कहा कि आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों संकरों को नियोजित करने से खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, जबकि अन्य निर्यातक देशों पर निर्भरता कम होगी।
उन्होंने कहा, "एकमात्र सवाल यह है कि क्या हमें इसे यहां उगाना चाहिए या अन्य देशों से आयात करना चाहिए, हमें स्वदेशी किस्मों को उगाकर अधिक खाद्य सुरक्षा और कम विदेशी निर्भरता की आवश्यकता है।" पिछली सुनवाई में, भूषण ने दलील दी थी कि मामला जीएम फसलों की जैव सुरक्षा से संबंधित है और उनके सेवन से विषाक्तता, एलर्जी और अन्य "अनपेक्षित परिणाम" हो सकते हैं।
उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा था कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का कृषि और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव सामने आया है और इससे देश की अन्य वनस्पतियों और जीवों के दूषित होने का खतरा पैदा हो सकता है। भूषण ने कहा था, "इसलिए, इन आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के विनियमन और जैव सुरक्षा का मुद्दा दुनिया भर में एक प्रमुख मुद्दा बन गया है।"
इससे पहले अगस्त 2023 में, शीर्ष अदालत ने केंद्र के आवेदन पर कोई तत्काल निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था, जिसमें बीज उत्पादन और परीक्षण के लिए जीएम सरसों को जारी करने की मांग की गई थी। उसने केंद्र से कहा था,“पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बनाए रखना होगा.. एक साल, यहां या वहां, कोई फर्क नहीं पड़ता। पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।'