Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 'मुफ्त रेवड़ियां' बांटने के मामले में दो राज्यों से मांगा जवाब

Supreme Court: 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले 'मुफ्त रेवड़ियों' यानि मुफ्त में चीजें बांटने के वादों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर दिया है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 'मुफ्त रेवड़ियां' बांटने के मामले में दो राज्यों से मांगा जवाब

Supreme Court: 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले 'मुफ्त रेवड़ियों' यानि मुफ्त में चीजें बांटने के वादों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर दिया है।
 
दरअसल, राज्यों में मुफ्त चीजें बांटने का आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें ऐसी घोषणाओं पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई करने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने चार हफ्ते में जवाब मांगा है।

क्या है फ्रीबीज? (freebies)

चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है।

मुफ्त चीज़े बांटने का इतिहास

वर्षों से मुफ्त सुविधा की राजनीति, चुनावी लड़ाई का एक अभिन्न हिस्सा रही है। तमिलनाडु में AIADMK नेता जयललिता ने 1990 के दशक में फ्री साड़ी, प्रेशर कूकर, टेलिविजन और वाशिंग मशीन देने जैसे वादे किए थे। 2006 में DMK ने विधानसभा चुनाव के बाद उनकी सरकार बनने पर फ्री कलर टीवी देने का वादा किया था।
2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने लोगों को मुफ्त बिजली और पानी देने का वादा किया था।

सब्सिडी और मुफ्तखोरी में अंतर

भारत जैसे देश में चुनाव के दौरान सभी नेता और राजनीतिक दल वोटर्स से कई वादे करते हैं। जिनमें से कुछ जनता को सब्सिडी देने की बात करते हैं और कुछ मुफ्त में सुविधाएं देने की। इसलिए जनता को मुफ्तखोरी और सब्सिडी के बीच का अंतर समझना चाहिए। सब्सिडी, एक उचित और किसी विशेष लक्षित लाभ के लिए होती है, जो जनता की मांग से उत्पन्न होती है जबकि मुफ्तखोरी इससे बिल्कुल अलग है। फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री यात्रा, बिल माफी और कर्ज माफी, ये सब मुफ्तखोरी का हिस्सा है।

मुफ्त रेवड़ियों का आर्थिक असर 

मुफ्त की योजनाओं से राज्य का आर्थिक ढांचा कमजोर हो सकता है, क्योंकि दी जाने वाली सब्सिडी का राज्य की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह है कि मुफ्त की सुविधाएं देने वाले अधिकांश राज्यों के पास इसके लिए मजबूत वित्तीय ढांचा नहीं है।

देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने वाले लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए हर राजनीतिक दल को सब्सिडी देने का अधिकार है, लेकिन इससे राज्य और केंद्र के सरकारी खजाने में लंबे समय के लिए बोझ नहीं पड़ना चाहिए। इससे देश की वित्तिय स्थिति खराब हो सकती है।

कहां से शुरू हुआ मामला

बता दें कि पिछले साल BJP नेता अश्विनी उपाध्याय फ्रीबीज के खिलाफ एक जनहित याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। अपनी याचिका में उन्होंने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के वोटर्स से फ्रीबीज या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की मांग की थी साथ ही यह भी कहा था कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने अश्विनी से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से फ्रीबीज की परिभाषा तय करने की भी अपील की थी। केंद्र ने कहा कि अगर फ्रीबीज का बंटना जारी रहा तो ये देश को 'आर्थिक आपदा' की ओर ले जाएगा।