Obscene Post: सोशल मीडिया पर अश्लील पोस्ट लाइक करना अपराध की श्रेणी में नहीं- इलाहाबाद कोर्ट

Obscene Post: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले लेने के दौरान कहा कि सोशल मीडिया पर किसीअश्लील पोस्ट को लाइक करना अपराध की श्रेणी में नहीं है।

Obscene Post: सोशल मीडिया पर अश्लील पोस्ट लाइक करना अपराध की श्रेणी में नहीं- इलाहाबाद कोर्ट

Obscene Post: अगर आप सोशल मीडिया (social media) पर किसी अश्लील पोस्ट (Obscene Post) को लाइक करते हैं...तो अब आपको परेशान होने या चिंतित होने की जरुरत नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad highcourt) ने एक महत्वपूर्ण फैसले लेने के दौरान कहा कि सोशल मीडिया पर किसीअश्लील पोस्ट को लाइक करना अपराध (crime) की श्रेणी में नहीं है। कोर्ट के कहने का मतलब ये है कि अश्लील पोस्ट को लाइक करना कोई क्राइम नहीं है। 

अश्लील पोस्ट को शेयर या दोबारा पोस्ट करना कानूनी जुर्म

अगर आप किसी अश्लील कंटेंट को लाइक करते हैं तो ठीक है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि आप किसी अश्लील पोस्ट को शेयर करें या उसे दोबारा पोस्ट करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको कानूनी परिणाम भुगतना पड़ सकता है।  

HC ने मो. इमरान काजी के खिलाफ चल रही कार्यवाही के दौरान कही ये बात

जज अरुण कुमार सिंह देशवाल ने ये टिप्पणी तब की जब उन्होंने आगरा के मोहम्मद इमरान काजी के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया, जिस पर गैरकानूनी सभा से संबंधित पोस्ट को लाइक करने के लिए आईटी अधिनियम की धारा 67 और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था।

उन्होने कहा, "हमें ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली जो आवेदक को किसी आपत्तिजनक पोस्ट से जोड़ सके क्योंकि आवेदक के फेसबुक और व्हाट्सएप अकाउंट में कोई आपत्तिजनक पोस्ट उपलब्ध नहीं है। इसलिए, आवेदक के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।"

न्यायमूर्ति देशवाल ने स्पष्ट किया, ''यह आरोप लगाया गया है कि केस डायरी में ऐसी सामग्री है जो दर्शाती है कि आवेदक ने गैरकानूनी सभा के लिए फरहान उस्मान की पोस्ट को लाइक किया है। लेकिन किसी पोस्ट को लाइक करने का मतलब पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करना नहीं होगा इसलिए, केवल किसी पोस्ट को लाइक करने पर धारा 67 आईटी अधिनियम लागू नहीं होगा।''

अश्लील पोस्ट लाइक करने पर हुई थी कार्यवाही

काज़मी को सोशल मीडिया पर उत्तेजक संदेशों को लाइक करने के लिए एक आपराधिक मामले का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोगों ने बिना अनुमति के जुलूस निकाला। आगरा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने आरोप पत्र पर ध्यान दिया और 30 जून को उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था।