One nation one election: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी हाई लेवल कमेटी, इन बड़े नेताओं को भी मिली जगह।

One nation one election: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में सरकार ने हाई लेवल कमेटी का गठन किया है। गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष सी कश्यप, हरीश साल्वे व संजय कोठारी को भी सदस्य बनाया गया है।

One nation one election: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी हाई लेवल कमेटी, इन बड़े नेताओं को भी मिली जगह।

One nation one election: ‘एक देश-एक चुनाव'  (One nation one election) का मुद्दा देश में काफी दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। एक लंबे समय से इस विषय को लेकर काफी दिनों से बहस भी छिड़ी हुई थी। जिसको लेकर आज आठ सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। जानकारी के मुताबिक इसकी अधिसूचना विधि एवं न्याय मंत्रालय ने जारी की है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Former President Ramnath Kovind) को इस आठ सदस्यीय कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। साथ ही साथ गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah), लोक सभा में कांग्रेस के नेता (congress leader) अधीर रंजन चौधरी कमेटी में सदस्य होंगे। इसके अलावा 'एक देश एक चुनाव' ( nation one election) की कमीटी में गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad), एनके सिंह, सुभाष सी कश्यप, सीनीयर ल़ॉयर हरीश साल्वे और संजय कोठारी को भी सदस्य बनाया गया है।

सरकार (Indian government) ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की संभावना तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया है। माना जा रहा है इस तरह से लोकसभा के चुनाव (Lok Sabha elections) तय समय से पहले कराने की संभावना बढ़ गई है। दरअसल, 'एक देश एक चुनाव' एक प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं (state assembly) के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इसका मतलब है कि चुनाव पूरे देश में एक ही चरण में होंगे।

क्या फायदा होगा?

इससे सबसे बड़ा फायदा चुनावों मे होने वाले खर्चे पर पड़ेगा लोकसभा (Lok Sabha) और विधानसभा (assembly)के चुनावों को एक साथ कराने से हरी झंडी मिलने पर कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों (assembly elections) के साथ ही लोकसभा चुनाव कराए जा सकेंगे। चुनाव में होने वाला खर्च में कमी आएगी। एक  रिपोर्टों के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों (2019 Lok Sabha elections) में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों (Political parties) द्वारा खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (Election Commission of India) द्वारा चुनाव कराने में खर्च की गई राशि शामिल है।

लॉ कमीशन (Law Commission) की रिपोर्ट के अनुसार अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो 4,500 करोड़ का खर्चा बढ़ता। ये खर्चा ईवीएम (Electronic Voting Machine) की खरीद पर होता लेकिन 2024 में साथ चुनाव कराने पर 1,751 करोड़ का खर्चा बढ़ेगा। इस तरह धीरे धीरे कर के अतिरिक्त खर्च कम हो जाएगा।

क्या हैं दिक्कतें ?

एक साथ चुनाव कराने में कई दिक्कतें भी हैं। इसके लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के कार्यकाल (Lok Sabha tenure) से जोड़ना पड़ेगा जिसके लिए संवैधानिक संशोधन (constitutional amendment) की आवश्यकता पड़ेगी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) के साथ साथ संसदीय प्रक्रियाओं (parliamentary procedures) को भी बदलना पड़ेगा। इस प्रक्रिया को लकेर क्षेत्रीय दलों (regional party) को यह डर भी रहेगा कि वे अपने स्थानीय मुद्दों जिससे उनको फायदा होता था उसका फायदा नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र बिंदू होंगे। साथ ही वे चुनाव खर्च और चुनाव रणनीति के मामले में राष्ट्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भी असमर्थ होंगे।

संसद के विशेष सत्र में होगी चर्चा

संसदीय कार्य मंत्री (Parliamentary Affairs Minister) प्रह्लाद जोशी ने बीते शुक्रवार को इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि “कमेटी का गठन किया जा चुका है। कमेटी जो रिपोर्ट पेश करेगी उसपर चर्चा की जाएगी। भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, यहां हमेशा विकास होता है। मैं संसद के विशेष सत्र में इस एजेंडे पर चर्चा करूंगा”।