Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने रेप के आरोपी को सुनाई 30 साल की सजा, मंदिर में की थी घिनौनी हरकत
मध्य प्रदेश के एक मंदिर में नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को एक लाख का जुर्माना भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए ये फैसला सुनाया।
Supreme Court: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के एक मंदिर में नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 30 साल की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को एक लाख का जुर्माना भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए ये फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने बरकार रखा आरोप
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार (Justice CT Ravikumar) और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल (Justice Rajesh Bindal) की पीठ ने केस में सुनवाई की। पीठ ने कहा कि हमने याचिकाकर्ता-दोषी द्वारा मंदिर ले जाने के बाद पीड़िता की असहाय स्थिति पर ध्यान दिया है। सबूतों से पता चलता है कि जगह की पवित्रता की परवाह किए बिना उसने उसे और खुद को निर्वस्त्र किया और उसके साथ बलात्कार किया। पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 एबी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
30 साल कारावास के साथ 1 लाख का जुर्माना
पीठ ने कहा कि घटना के समय दोषी की उम्र 40 साल थी। 30 साल की सजा की एक निश्चित अवधि कारावास की संशोधित सजा होनी चाहिए। इसमें पीड़िता को उसके चिकित्सा खर्च और पुनर्वास के लिए दिए जाने वाले जुर्माने की राशि 1 लाख रुपये भी निर्धारित की गई है।
आरोपी ने HC के आदेश को SC में दी थी चुनौती
एफआईआर के मुताबिक, 7 साल की बच्ची आम लेने जा रही थी और रास्ते में आरोपी उससे मिला। आरोप है कि आरोपी बच्ची को नमकीन देने के बहाने मंदिर में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। बता दें कि निचली अदालत ने आरोपी को मौत की सज़ा सुनाई थी। लेकिन, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया। वहीं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में हाईकोर्ट से दी गई सजा को कम करने की चुनौती दी गई थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किया गया अपराध बर्बर और क्रूर नहीं था। पीड़िता की गर्दन, गाल, छाती, पेट, जांघ और जननांग के बाहरी हिस्से पर कोई बाहरी चोट नहीं पाई गई थी।
दोषी ने अपराध क्रूरतापूर्वक किया था- SC
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि जब 'बर्बर' और 'क्रूर' शब्दों का एक साथ उपयोग किया जाता है तो वे पर्यायवाची का चरित्र नहीं लेते हैं, बल्कि विशिष्ट अर्थ लेते हैं। यह कहना सही हो सकता है कि याचिकाकर्ता-दोषी ने बलात्कार का अपराध क्रूरतापूर्वक किया था, लेकिन फिर निश्चित रूप से उसकी कार्रवाई बर्बर थी। हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि तथ्य यह है कि उसने इसे क्रूरतापूर्वक नहीं किया है, इससे इसका कृत्य गैर-बर्बर नहीं हो जाएगा।"