Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजना के वादों पर की सुनवाई, केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव से पहले मुफ्त की योजनाओं के वादों पर मंगलवार (15 अक्टूबर को) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचुड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा किया है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजना के वादों पर की सुनवाई, केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

Supreme Court: राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव से पहले मुफ्त की योजनाओं के वादों पर मंगलवार (15 अक्टूबर को) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचुड़ (Chief Justice DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की पीठ ने केंद्र सरकार (Central government) और चुनाव आयोग (election Commission) को नोटिस भेजा किया है।

फ्री योजनाओं के वादों को रिश्वत घोषित करने की मांग 

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कर्नाटक के शशांक जे श्रीधर (Shashank J Sridhar of Karnataka) की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में चुनाव के दौरान पॉलिटिकल पार्टिज की ओर से किए गए फ्री योजनाओं के वादों को रिश्वत घोषित करने की मांग क गई है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से यह भी मांग की है कि चुनाव आयोग (election Commission) ऐसी योजनाओं पर तुरंत रोक लगाए। सर्वोच्य न्यायालय ने चुनावी वादों की पुरानी याचिकाओं के साथ आज की याचिका को सुनवाई के लिए मर्ज कर लिया।

चुनाव के बाद योजनाओं को पूरा नहीं किया जाता 

याचिकाकर्ता के, श्रीधर के वकील विश्वदित्य शर्मा और बालाजी श्रीनिवासन ने याचिका में कहा कि चुनाव के बाद मुफ्त की उन योजनाओं को पूरा नहीं किया जाता है, जिस पर वोट हासिल किए गए थे। मुफ्त योजनाएं और कैश देने के वादे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत रिश्वत देकर वोट देने के लिए प्रेरित करने की भ्रष्ट प्रथा है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा है कि राजनीतिक दल ऐसी फ्री की योजनाओं को कैसे पूरा करेंगे, यह नहीं बताते। इससे सरकारी खजाने पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ता है। यह मतदाताओं और संविधान के साथ धोखाधड़ी है। इसलिए इस पर रोक के लिए तत्काल और प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए।

फ्रीबीज को रिश्वत माना जाए- याचिकाकर्ता 

याचिकाकर्ता शशांक जे श्रीधर के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने सोमवार (14 अक्टूबर) को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ के सामने इस मामले को उठाया था। उन्होंने कहा कि विधानसभा या आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों का मुफ्त योजनाओं का वादा करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत रिश्वत या वोट के लिए लालच देना माना जाए।

जनवरी 2022 में भी दाखिल की गई थी एक याचिका 

इससे पहले बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने फ्रीबीज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। अपनी याचिका में उपाध्याय ने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के मतदाताओं से फ्रीबीज या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की अपील की थी। इसमें मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों की मान्यता रद्द करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में केस में अब तक क्या हुआ? 

अगस्त 2022 में फ्रीबीज केस की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई में तीन जजों की पीठ ने शुरू की थी। इस पीठ में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थे। बाद में तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित ने इस केस सुनवाई की और अब सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ इस केस की सुनवाई कर रहे हैं।

‘फ्री स्कीम्स देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत निर्णय’ 

11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा था कि फ्रीबीज पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनावों से पहले फ्री योजनाओं का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत निर्णय होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का गलत इस्तेमाल करना होगा। इस मामले में कोर्ट ही तय करे कि फ्री योजनाएं क्या हैं और क्या नहीं। इसके बाद ही हम इसे लागू करेंगे।