Supreme Court News: नकली नोटों की तस्करी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी, अपराधी पैदा नहीं होते, बल्कि बनाए जाते हैं
नकली नोटों की तस्करी मामलें को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अपराधी पैदा नहीं होते, बल्कि बनाए जाते हैं। कोर्ट ने यह कमेंट 3 जुलाई को किया।
Supreme Court News : नकली नोटों की तस्करी मामलें (Fake currency smuggling cases) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अपराधी पैदा नहीं होते, बल्कि बनाए जाते हैं। कोर्ट ने यह कमेंट 3 जुलाई को किया। मामलें की सुनवाई जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala)और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां (Justice Ujjwal Bhuiyan) ने की।
क्या है मामला?
यह मामला साल 2020 में नकली नोटों की तस्करी से जुड़ा हुआ है। बता दें कि NIA ने फरवरी 2020 में मुंबई के अंधेरी इलाके से 2 हजार के 1193 नकली नोटों (इंडियन करेंसी) के साथ एक युवक को हिरासत में लिया था। NIA ने दावा किया था कि तस्करी के जरिए इन नकली नोटों को पाकिस्तान से मुंबई लाया गया था। बता दें कि बीते 4 साल से युवक NIA की हिरासत में है। वहीं 5 फरवरी 2024 को युवक ने मुंबई हाईकोर्ट (Mumbai High Court) में जमानत याचिका दर्ज की थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद युवक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
बेंच ने कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि हर किसी में मानवीय क्षमता अच्छी होती है। इसलिए ये नहीं मानना चाहिए कि अभी जो अपराधी है, वे भविष्य में सुधर नहीं सकते। अक्सर अपराधियों, किशोर (टीनेजर) और वयस्क (युवा) के साथ व्यवहार करते समय मानवतावादी मूल सिद्धांत छूट जाते हैं।
बेंच ने आगे कहा कि जब कोई क्राइम होता है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। चाहे वो सामाजिक और आर्थिक हो, माता-पिता की उपेक्षा का परिणाम हो, अपनों की अनदेखी का कारण हो, विपरीत परिस्थितियों, गरीबी, संपन्नता के अभाव और लालच हो सकते हैं।
हमें आश्चर्य है कि यह केस कब खत्म होगा - बेंच
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता बीते 4 साल से हिरासत में है। हमें आश्चर्य है कि यह केस कब खत्म होगा। इतना ही नही बेंच ने चिंता जताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति से परे लागू होता है। बेंच ने कहा कि अपराध चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, आरोपी को भारत के संविधान के तहत तत्काल सुनवाई का अधिकार है। समय के साथ ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट कानून के बने हुए सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए।