Rat Miners: कौन हैं रैट माइनर्स, जिन्होंने सिल्क्यारा टनल से सुरक्षित निकाले 41 मजदूर
जैसे की चूहे अपना बिल बनाते हैं, ठीक उसी तरह इस तकनीक के तहत रैट माइनर्स पहले एक पतली सुरंग खोदते हैं और बाद में उसका मलबा निकाल कर बाहर फेंकते हैं।
Rat Miners: उत्तरकाशी टनल हादसे में 17वें दिन बड़ी सफलता मिली है। आखिरकार टनल में फंसे 41 मजदूरों को सही सलामत बाहर निकाल लिया गया। टनल (Uttarkashi Tunnel) में फंसे मजदूरों को नई जिंदगी देने में रैट माइनर्स का अहम योगदान (Rat Miners) रहा है। दरअसल रैट माइनर्स वो लोग हैं जिन्हें चूहे जैसी सुरंग खोदने में महारत हासिल हैं।
कौन हैं रैट माइनर्स (Rat Miners)
रैट-होल एक तरह की माइनिंग की प्रक्रिया होती है, जिसकी शुरुआत सबसे पहले भारत के उत्तर पूर्व में रहने वाले जनजातीय लोगों ने की थी। दरअसल, भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके जैसे की मेघालय (Meghalaya), अरुणाचल और अन्य जगह पर कई महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं, हालांकि पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां बड़ी-बड़ी मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए खदानों से खनिजों को निकालने के लिए रैट होल माइनिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। रैट होल माइनर्स भारत के उत्तर-पूर्वी इलाकों में रहने वाले वो जनजातिय लोग होत हैं
क्या है रैट होल माइनिंग (Rat Hole Mining)
रैट होल माइनिंग के लिए बड़ी मशीनों की जगह माइनर्स हाथ से इस्तेमाल होने वाले औजारों का इस्तेमाल करते हैं। जैसे की चूहे अपना बिल बनाते हैं, ठीक उसी तरह इस तकनीक के तहत रैट माइनर्स पहले एक पतली सुरंग खोदते हैं और बाद में उसका मलबा निकाल कर बाहर फेंकते हैं।
छोटी जगह के लिए बेस्ट
रैट माईनर्स को छोटी जगहों पर खुदाई के लिए बेस्ट माना जाता है। वहीं ज्यादातर रैट माइनिंक तकनीक का इस्तेमाल अवैध कोयला खदान से कोयला खनन के लिए किया जाता है। दरअसल अवैध खदानों से खनिज या अन्य पदार्थों को प्रशासन की नजर मशीनों और अन्य उपकरणों की मौजूदगी पर आसानी से पड़ सकती है। इसलिए चोरी-छिपे इंसानों से कोयले की छोटी-छोटी खदानों में रैट माइनिंग कराई जाती है।
रिस्की है प्रोसेस
हालांकि उत्तरकाशी टनल में रैट माइनर्स को ऑक्सीजन सहित कई सुविधाएं मिली थी, लेकिन असल में रैट माइनर्स बिना ऐसी किसी सुविधा के खदानों में जाते हैं। रैट माइनर्स सख्त पत्थर या कोयले को मैनुअल ड्रिलिंग करके काटते हैं। बता दें कि रैट होल माइनिंग बेहद ही खतरनाक और रिस्की प्रोसेस है। कई बार खुदाई के दौरान खदानें धंस जाती हैं, और इसमें दबकर इनकी मौत भी हो जाती है। जबकि कभी-कभी खुदाई के दौरान सुरंग में पानी भर जाता है जिसके चलते उसमें डूबने से भी रैट माइनर्स की मौत हो जाती है। यही वजह है कि 2014 में ही मेघालय में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने इस पर रोक लगा दी थी।
उत्तरकाशी टनल हादसे के हीरो
उत्तरकाशी टनल हादसे में सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को बचाने में दिन-रात एक्सपर्ट्स की टीम लगी रही। इंटरनैशनल एक्सपर्ट्स के साथ कई टीमों ने मजूदरों को बचाने में दिन रात एक कर दिए। हालांकि जिंदगियों को बचाने की जद्दोजहद में आखिरकार रैट माइनर्स ही काम आए। मैन्युअल तरीके से मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट होल माइनर्स को बुलाया गया। जिन लोगों ने मजदूरों को निकालने के लिए बिछाई गई 800 एमएम पाइप के जरिए बाकी बच्चे हिस्से में खुदाई की और सुरक्षित सभी मजदूरों को बाहर निकाला।