JITIYA VRAT: जानिये, कब है जितिया व्रत, क्या है इसका महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि?
JITIYA VRAT: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक जितिया व्रत रखा जाता है।
JITIYA VRAT: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक जितिया व्रत (Jitiya Vrat ) रखा जाता है। इस साल जितिया व्रत 6 अक्टूबर को रखा जाएगा। हालांकि उदयातिथि मानने वाले इस व्रत को 7 अक्टूबर को भी रख सकते हैं। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से अष्टमी के दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के रखती हैं। जो बेहद कठिन व्रत है। जितिया व्रत में गंधर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा होती है और व्रत कथा सुनने की प्रथा है। वहीं यह पर्व सप्तमी से शुरू होकर नवमी के दिन सम्पन्न होता है।
जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: 06 बजे से लेकर सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक ही रहेगा ।
जितिया व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार जितिया व्रत के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि इस दिन राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती हैं। जीमूतवाहन ने नाग वंश की गरूड़ देव से रक्षा की थी और उनके परोपकार से प्रसन्न होकर पक्षीराज गरूड़ ने नाग वंश को जीवनदान दिया था। उन्होंने जीमूतवाहन को वचन दिया था कि वो नाग वंश को अपना भोजन नहीं बनाने देगें। यही कारण है कि हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है ।
जितिया व्रत की विधि
जितिया व्रत की पूजा प्रदोष काल में किया जाता है। सबसे पहले स्नान –ध्यान के पश्चात निर्जला व्रत एवं पूजा का संकल्प करें, साथ ही जीमूतवाहन की कुशा की मूर्ति बनाएं। फिर गाय के गोबर से चील और सियार की मूर्ति बनाएं और पानी से भरे एक पात्र में इन मूर्तियों को स्थापित करें। फिर इन्हें सरसों के तेल ,बांस के पत्ते के 16 गांठ लगे धागे और सरसों की खली चढ़ाएं। प्रतिमाओं के समक्ष धूप-दीप जला कर दूर्वा, पान, सुपारी, इलायची,पंचामृत, चंहन,रोली, फूल आदि अर्पित करें। भोग में फल के साथ मिष्ठान चढ़ाएं। फिर चील और सियार की पूजा करें, इन्हें सिंदूर एंव श्रंगार की सामग्री चढ़ाएं। उसके बाद जितिया व्रत की कथा सुनें और अंत में आरती करें। फिर अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान - दक्षिणा देकर विदा करें। उसके बाद व्रत का पारण करें।
जितिया व्रत के नियम
- इस व्रत को निर्जला रहा जाता है।
- जीवित्पुत्रिका व्रत संतान के लिए रखा जाता है, तो इस दिन अपने संतान को दुखी न होने दें और वाद-विवाद से बचें ।
- धार्मिक कार्यों से पुण्य प्राप्त करने के लिए मन, वचन और कर्म सभी पवित्र रखें।
- उपवास में किसी के लिए घृणा ,लालच ,चोरी ,झूठ बोलना जैसे कार्य नहीं करना चाहिए।
- व्रत में सात्विक भोजन करें, लहसुन,प्याज को उपयोग में ना लाएं।