Holi festival in Ayodhya : रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में पहली होली,कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे रामलला

रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की पहली होली है। रंगभरी एकादशी पर रामलला के गाल पर भी गुलाल लगाया गया। वहीं हनुमानगढ़ी मंदिर में हनुमान जी को गुलाल लगाकर रंगोत्सव मनाया गया। ब्रह्ममुहूर्त में ही नगर के 10 हजार से अधिक मंदिरों के गर्भगृह में विराजमान भगवान की राग-भोग आरती, साज-सज्जा के साथ उनके गाल पर गुलाल लगाया गया।

Holi festival in Ayodhya : रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में पहली होली,कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे रामलला

Holi festival in Ayodhya : रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की पहली होली है। रंगभरी एकादशी पर रामलला के गाल पर भी गुलाल लगाया गया। वहीं हनुमानगढ़ी मंदिर में हनुमान जी को गुलाल लगाकर रंगोत्सव मनाया गया। ब्रह्ममुहूर्त में ही नगर के 10 हजार से अधिक मंदिरों के गर्भगृह में विराजमान भगवान की राग-भोग आरती, साज-सज्जा के साथ उनके गाल पर गुलाल लगाया गया। अवध में होली के आगाज पर मंदिरों में आने वाले भक्तों को भी प्रसाद के रूप में गुलाल लगाया गया।

बसंत पंचमी से हो जाती है होली की शुरुआत

फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानी कि रंगभरी एकादशी पर्व से अवध की होली की विधिवत शुरूआत हुई। वैसे तो वसंत पंचमी से ही राम नगरी में औपचारिक रूप से मंदिरों में होली का शुभारंभ हो जाता है। और रोज भगवान को अबीर-गुलाल भी चढ़ाया जाता है।

कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे रामलला

भव्य एंव दिव्य मंदिर में विराज रामलला इस बार कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे।  सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने मिलकर कचनार के फूलों से बने गुलाल को खास तौर पर तैयार किया है। यही नहीं, वैज्ञानिकों ने गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर के चढ़ाए हुए फूलों से भी एक हर्बल गुलाल तैयार किया है। बुधवार को संस्थान के निदेशक ने दोनों खास गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किए।

कचनार को त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष माना जाता था

अयोध्या के लिए बौहिनिया प्रजाति जिसे आमतौर पर कचनार के नाम से जाना जाता है, के फूलों से हर्बल गुलाल बनाया गया है। कचनार को त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष माना जाता था और यह हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की सुस्थापित औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल आदि गुण भी होते हैं। इसी तरह, गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल को तैयार किया गया है। इन हर्बल गुलाल का परीक्षण किया जा चुका है और यह मानव त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है।

ये गुलाल लैवेंडर प्लेवर में बनाए गए हैं

निदेशक ने बताया कि कचनार के फूलों से हर्बल गुलाल लैवेंडर फ्लेवर में बनाया गया है, जबकि गोरखनाथ मंदिर के चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल चंदन फ्लेवर में विकसित किया गया है। इन हर्बल गुलाल में रंग चमकीले नहीं होते क्योंकि इनमें लेड, क्रोमियम और निकल जैसे केमिकल नहीं होते हैं। इसे त्वचा से आसानी से पोंछ कर हटाया जा सकता है। गुलाल की बाजार में बेहतर उपलब्धता के लिए हर्बल गुलाल तकनीक को कई कंपनियों को दिया गया है।

बाजार में आसानी से मिलेगा ये गुलाल

बाजार में मिलने वाले रासायनिक गुलाल के बारे में बात करते हुए, डॉ. शासनी ने कहा कि "ये गुलाल वास्तव में जहरीले होते हैं, इनमें खतरनाक रसायन होते हैं जो त्वचा और आंखों में एलर्जी, जलन और गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं। उन्होंने आगे बताया कि हर्बल गुलाल की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि यह अन्य गुलाल की तरह हाथों में जल्दी रंग नहीं छोड़ेगा। संस्थान द्वारा विकसित हर्बल गुलाल होली के अवसर पर बाजार में बिक रहे हानिकारक रासायनिक रंगों का एक सुरक्षित विकल्प है।"