Allahabad High Court: हिंदू विवाह के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, मंजूर की महिला की याचिका

वैध विवाह के लिए रीति-रिवाज, समारोह और सप्तपदी जरूरी, हाईकोर्ट में याची के ​खिलाफ विवाह विच्छेद के बिना दूसरी शादी करने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी रद्द

Allahabad High Court: हिंदू विवाह के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, मंजूर की महिला की याचिका

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हिंदू विवाह अ​धिनियम (hindu marriage act) के केस में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। विवाह के रीति-रिवाजों पर कोर्ट ने कहा कि एक वैध विवाह के लिए उचित समारोह के साथ विवाह का जश्न मनाना आवश्यक है। हिंदू विवाह जब तक उचित रीति-रिवाजों के साथ कराया या संपन्न नहीं किया जाता, तब तक विवाह को संपन्न नहीं कहा जा सकता है। सप्तपदी भी हिंदू विवाह का आवश्यक भाग है। अगर विवाह वैध विवाह नहीं है तो दोनों पक्षों पर लागू कानून के अनुसार, यह विवाह नहीं है। भले ही वह दूसरा विवाह हो। 

पहली शादी छिपाकर दूसरी शादी का आरोप

मौजूदा केस आगरा का है। जहां याची/पुननिरीक्षणकर्ता के ​खिलाफ सिंकदरा थाने में प्राथमिकी में दर्ज कराई गई थी। शिकायतकर्ता ने पहली शादी को छूपाकर दूसरी शादी करने का आरोप लगाया है। जबकि, दूसरी शादी के संबंध में प्रतिवादियों की ओर से कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। इसके साथ ही बयानों में भी सप्तपदी की रस्म होने की जानकारी नहीं मिली है। जिसके बाद याची के ​खिलाफ आईपीसी की धारा-494 के अंतर्गत आरोप साबित नहीं होता है। ये आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. गौतम चौधरी ने निशा की ओर से दा​खिल पुननिरीक्षण याचिका को आं​शिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

दूसरी शादी का आरोप पुष्ट सामग्री के बिना बेबुनियाद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध का गठन करने के लिए यह जरूरी है कि दूसरी शादी उचित समारोहों और उचित रूप में मनाई जानी चाहिए। हिंदू कानून के अंतर्गत 'सप्तपदी' समारोह वैध विवाह के लिए आवश्यक विधियों में से एक है, लेकिन इस मामले में साक्ष्य का अभाव है। इसके अलावा दर्ज शिकायत और  सीआरपीसी की धारा 200 और 202 के तहत दर्ज बयानों में 'सप्तपदी' के संबंध में कोई दावा मौजूद नहीं है। इसलिए इस न्यायालय का मानना है कि याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनता है। दूसरी शादी का आरोप सबूतों के बिना एक बेबुनियाद आरोप है। इस संबंध में ठोस सबूत के अभाव में यह मानना मुश्किल है।

न्यायालयों का कर्तव्य निर्दोष की रक्षा करे- कोट

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि याची के ​खिलाफ शुरू की गई यह आपरा​धिक कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण है। जो साफ तौर से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कई तर्कों के साथ कोर्ट ने अपने फैसले में 20 फरवरी 2023 के एसीजेएम के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में पेश किये गए तथ्यों और परिस्थितियों के तहत मालूम होता है कि अगर याची के ​खिलाफ इस धारा के तहत कार्रवाई की गई तो यह उसके साथ न्याय नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों का कर्तव्य है कि वह निर्दोष की रक्षा करे। कोर्ट ने अपने इस आदेश में 494 के तहत की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने 504 और 506 के मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

ये है पूरा मामला

याचि ने आर्य समाज मंदिर में की थी दूसरी शादी

मामले में याचिकाकर्ता निशा के ​खिलाफ प्रतिवादी (याचि का दूसरा पति) ने इस आरोप में ​शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी शादी पहले विजय सिंह के साथ हुई थी। बिना तलाक लिए और पहले पति के जीवित रहते उसने ​आर्य समाज मंदिर में जाकर उसके साथ दूसरी शादी कर की। जब इस बात की उसे (दूसरे पति) को जानकारी हुई तो उसने याची से पूछा। इस पर याची ने उसे झूठे मुकदमें में फंसाने की धमकी देते हुए 10 लाख रुपये की मांग की। मामले में जांच के बाद एसीजेएम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए याची को समन भेजा।

याची महिला ने दाखिल किया जवाब

समन के जवाब में याची की ओर से कहा गया कि वह अपने पहले पति विजय सिंह से 16 वर्षों से अलग रह रही है। उनका एक-दूसरे से कोई संपर्क या सरोकार नहीं है। उसके पास तलाक के कागजात भी है। इसके बाद याची ने प्रतिवादी यानी अपने दूसरे पति और उसके परिवार वालों के ​खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 323, 354(खा), 504, 506 के तहत केस दर्ज कराया। याचि ने यह शिकायत दूसरे पति के खिलाफ दर्ज कराई है। याची ने बताया कि उसने आर्य समाज मंदिर में प्रतिवादी के साथ शादी की थी। वह उसके साथ एक किराए के मकान में रहती थी। वहां उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाए।

कोर्ट ने नहीं मानी सरकारी अ​धिवक्ता की दलीलें

इसके बाद दूसरा पति उसे अपने घर ले गया। यहां उसके और उसके परिवार के लोगों ने उसके साथ दुर्व्यहार किया। उसको मारा पीटा, उसके कपड़े फाड़ दिये। जिसमें उसका एक पैर भी टूट गया। जिसके बाद उसने प्रतिवादी और उसके परिवार वालों के ​खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। अदालत के सामने सरकारी अ​धिवक्ता ने इसका विरोध किया लेकिन कोर्ट ने उसकी नहीं सुनी और याचिका को आं​शिक रूप से मंजूर कर लिया। साथ ही कोर्ट ने 494 आईपीसी की धारा के तहत कार्रवाई को रद्द कर दिया।