Vandana Thakur:बिस्किट बेचने से लेकर वर्ल्ड चैंपियन तक कुछ ऐसा था वंदना ठाकुर का सफर

हाल के सालों में महिलाओं के काम, उनके पैशन को लेकर समाज की सोच काफी तेजी से बदली है। लड़कियां जिस क्षेत्र में चाहे, काम कर सकती हैं, जो चाहे वो कैरियर अपने लिए चुन सकती हैं। आज तमाम ऐसी लड़कियां हैं जिन्होंने साहस  का दंभ भरते हुए, बॉडी बिल्डिंग में भी अपना नाम बना लिया है। ऐसी ही एक महिला हैं वंदना ठाकुर।

Vandana Thakur:बिस्किट बेचने से लेकर वर्ल्ड चैंपियन तक कुछ ऐसा था  वंदना ठाकुर का सफर

Vandana Thakur: हाल के सालों में महिलाओं के काम, उनके पैशन को लेकर समाज की सोच काफी तेजी से बदली है। लड़कियां जिस क्षेत्र में चाहे, काम कर सकती हैं, जो चाहे वो कैरियर अपने लिए चुन सकती हैं। आज तमाम ऐसी लड़कियां हैं जिन्होंने साहस  का दंभ भरते हुए, बॉडी बिल्डिंग में भी अपना नाम बना लिया है। ऐसी ही एक महिला हैं वंदना ठाकुर, उन्होने मध्य प्रदेश की पहली महिला बॉडिबिल्डर की उपलब्धि हासिल की है। आज हम बात करेंगे वंदना और उनके संघर्ष की। 

कौन हैं वंदना ठाकुर

मध्य प्रदेश की पहली महिला बॉडी बिल्डर (first female bodybuilder) के रूप में वंदना ठाकुर को लोग जानने लगे हैं। उन्होने कई नेशनल-इंटरनेशनल खिताब अपने नाम किए हैं। वर्ल्ड पावर लिफ्टिंग चैम्पियनशिप (World Power Lifting Championship)में उन्होने स्वर्ण पदक भी हासिल किया है। वंदना इंदौर का रहने वाली हैं जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती हैं उनके पिता कमल सेन ठाकुर फौज में सूबेदार थे। वंदना का कहना है कि जब वे 13 साल की थी, तब उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां का नाम ज्योत्सना था, जो कैंसर से जूझ रही थीं जब वंदना 16 साल की हुई तो उनका मां ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। किताबें और नोट बुक उन्होने रद्दी और कबाड़ की दुकान से खरीदकर किसी तरह 12वीं तक ही पढ़ाई की। 

संघर्ष में बीता जीवन 

वंदना की जिंदगी में संघर्ष की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। वंदना बताती हैं कि जब वे 12 साल की थीं, तब से ही उन्होने अपनी मां को कैंसर से जूझते देखा, पिता के जाने के बाद परिवार अकेला हो गयो तो परिवार को पालने के लिए किराना भी बेचा। दो वक्त के खाने का लिए उन्होने इंदौर में बिस्किट की छोटी सी दुकान खोली और तो और अगरबत्ती भी बनाई। 

बॉडी-बिल्डिंग की दुनिया ने बदली किस्मत 

वंदना का कहना है कि उनके पिता देश के लिए लड़ते थे, और उन्होने देश का नाम रोशन करने का मन बना लिया। सबसे पहले क्रिकेट में हाथ आजमाया लेकिन ट्रेनिंग और किट महंगी थी तो, क्रिकेट से दूरी बनानी पड़ी।फिर पावर लिफ्टिंग शुरू की।  कुछ मैडल भी जीते, जिसके बाद गुरु अतिन तिवारी के मार्गदर्शन में बॉडी बिल्डिंग शुरू की। लुधियाना में हुई नेशनल बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में उन्होने सिल्वर मैडल हासिल किया। उन्होंने एशिया-वर्ल्ड चैम्पियनशिप के लिए क्वालिफाई भी किया है।  वे अब भारत को गोल्ड मैडल दिलाना चाहती हैं। 

कठिन सफर में परिचित बने सहारा 

वंदना करीब 30 साल की हैं, उनका मानना है कि खेल में डाइट और वर्कआउट का सबसे ज्यादा योगदान है, उनका वजन करीब 60 किलो है। अंडे से लेकर कई तरह के फाइबर और प्रोटीन तक उनके डाइट में शामिल  हर चीज काखर्च करीब 40 हजार रुपए महीने है, जिसे  जान पहचान वालों और खेल प्रेमियों की मदद से पूरा करती हैं। वे बच्चों की कोचिंग भी लेती हैं। सबकी मदद से ही उन्हें मप्र की पहली महिला बॉडी बिल्डर बनने का सम्मान मिला है।