Section 6A of Citizenship Act: नागरिकता अधिनियम की धारा 6A वैध, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर गुरुवार (17 अक्टूबर) को फैसला सुनाया।

Section 6A of Citizenship Act: नागरिकता अधिनियम की धारा 6A वैध, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

Section 6A of Citizenship Act:  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) की धारा 6A (Section 6A) की संवैधानिक वैधता (constitutional validity) को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर गुरुवार (17 अक्टूबर) को फैसला सुनाया। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) के अलावा जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant), जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala), जस्टिस एमएम सुंदरेश (Justice MM Sundaresh) और जस्टिस मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) शामिल थे। फैसला पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) समेत चार जजों ने सहमति जताई है। वहीं इस संविधान पीठ में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने असहमति जताई।

1966 से 1971 के बीच असम आए अवैध अप्रवासी को मिली नागरिकता

दरअसल, नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को 1985 में असम समझौते के दौरान जोड़ा गया था। 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले अवैध अप्रवासी बांग्लादेशियों को नागरिकता का लाभ दिया गया था। उन्हें भारतीय नागरिकता दी गई थी। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारत की नागरिकता के लायक नहीं हैं।

धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार 

फैसला सुनाते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। हम किसी को अपने पड़ोसी चुनने की इजाज़त नहीं दे सकते और यह उनके भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। हमारा सिद्धांत है जियो और जीने दो। 

‘असम समझौता राजनीतिक समाधान’ 

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। बांग्लादेश के निर्माण के बाद असम में बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासियों के प्रवेश ने राज्य की संस्कृति और जनसांख्यिकी को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया था। 

जस्टिस पारदीवाला ने धारा 6ए को असंवैधानिक बताया

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुन्दरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने बहुमत से दिए गए अपने फैसले में कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है। वहीं जस्टिस पारदीवाला ने फैसले पर असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं 17 याचिकाएं 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह आदेश उन 17 याचिकाओं पर दिया है जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेश से शरणार्थियों के आने से असम राज्य के जनसांख्यिकीय संतुलन पर बड़ा असर पड़ा है। याचिका में ये भी कहा गया था कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन है।

असम के लिए ही बनी थी धारी 6ए

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। यह विशेष रूप से असम के लिए ही बना था। असम में आने वाले प्रवासियों की संख्या और संस्कृति आदि पर उनका प्रभाव असम में ज्यादा है। असम में 40 लाख प्रवासियों का प्रभाव पश्चिम बंगाल के 57 लाख से ज्यादा है, क्योंकि असम का क्षेत्रफल पश्चिम बंगाल के मुकाबले कम है।

सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A क्या है? 

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए, भारतीय मूल के विदेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता लेने की अनुमति देती है। जो 1 जनवरी, 1966 के बाद लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे। यह प्रावधान 1985 में असम समझौते के बाद डाला गया था, जो भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ एक समझौता था।