Ashutosh Rana Interview: फिल्म 'लकीरें' को लेकर एक्टर आशुतोष राणा ने डेली लाइन से की खास बातचीत
Ashutosh Rana Interview: अपनी आने वाली फिल्म लकीरें को लेकर आशुतोष राणा ने डेली लाइन से खुल कर बातचीत की। इंटरव्यू में उनके द्वारा कही गई कुछ बातें दिल को छू गईं।
Ashutosh Rana Interview: हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एक ऐसे अभिनेता जो अपनी वर्सेटाइल एक्टिंग, शानदार पर्सलेनिटी और हिंदी भाषा में बेजोड़ पकड़ के जरिये लोगों के दिलों में बसते हैं। हम बात कर रहे हैं एक्टर आशुतोष राणा (Actor Ashutosh Rana) की। जिनकी फिल्म लकीरें (Lakeeren Movie) 3 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। क्या है फिल्म लकीरें (ashutosh rana latest movies) की कहानी, आशुतोष राणा जी इस फिल्म में किस किरदार में नजर आएंगे, इस फिल्म के जरिये दर्शकों को क्या संदेश देने की कोशिश की गई है।
इन सभी बातों पर आशुतोष राणा ने डेली लाइन से खुल कर बातचीत की। इंटरव्यू में उनके द्वारा कही गई कुछ बातें दिल को छू गईं। आशुतोष राणा से की गई बातचीत के कुछ अंश आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
सवाल- फिल्म लकीरें (Movie Lakeeren) को लोग क्यों देखना चाहेंगे, इसमें क्या दर्शकों के लिए क्या नया है?
फिल्म लकीरें एक विषय प्रधान फिल्म है। जो बड़ी ही सेंसेटिव मुद्दे पर आधारित है। ये फिल्म डोमेस्टिक वॉलेंस और मैरिटल रेप के मुद्दे को दर्शकों के सामने लेकर आती है। विवाह के बाद अनिच्छा से बनाया गया संबंध कभी कभी बलात्कार की श्रेणी में भी आता है, तो क्या उसे बलात्कार की श्रेणी में आना चाहिए और अगर आना चाहिए तो क्या उसके दंड के प्रावधान होने चाहिए, किन धाराओं के अंतर्गत होने चाहिए। क्या इसे अपराध के तौर पर चिन्हित कर सकते हैं?
भारत में विवाह को एक सुशितापूर्ण, संस्कृति औऱ पवित्र माना जाता है। जैसे स्त्रियों के लिए सोलह श्रृंगार का महत्व है वैसे ही हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का महत्व है। जिसमें से एक संस्कार विवाह है।
सवाल- व्यक्तिगत रूप से आपको (Ashutosh Rana) इस फिल्म का सब्जेक्ट कैसा लगा ?
इस विषय पर बात होनी चाहिए। ये बहुत ही आवश्यक विषय है। जिस पर हमें विचार करना चाहिए और जब हम विचार करेंगे तब कहीं ना कही हम अपने व्यक्तिगत जीवन में उपचार और परिष्कार की दिशा में बढ़ेंगे। हमारा समाज भावात्मक और संवेदनशील दोनों है।
इमोशनल होना और सेंसेटिव होना इन दोनों में अंतर होता है। जीवन इमोशनल होने से नहीं सेंसटिव होने से चलता है। बदलाव की कोई चुनौती या पेशकश नहीं है। विचार की पेशकश है। दुग्रेश पाठक निर्देशित और दिलीप शुक्ला द्वारा लिखे इस विचार को फिल्म के माध्यम से हम साझा कर रहे हैं।
ये एक चर्चा का विषय है जिसे हमने रूपहले पर्दे पर एक केस के माध्यम से समाज के सामने रख दिया है। कोई भी फिल्म अभिनेता या निर्देशक की तब तक होती है जब तक वो रीलीज नहीं हो जाती।
फिल्म के रीलीज होने के बाद उस पर से अभिनेता या निर्देशक का अधिकार हट जाता है। वो फिल्म दर्शकों की हो जाती है। तो तीन नंवबर को ये फिल्म दर्शकों की हो जाएगी। अगर उन्हें लगता है कि इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए तो ये बहुत आनंद की बात है।
आशुतोष राणा ने लखनऊ को ‘रसीला शहर’ कहा
अभिनेता आशुतोष राणा ने अपने इंटरव्यू में लखनऊ की तारीफ करते हुए कहा कि यूपी के खूबसूत शहरों में एक खूबसूतर शहर लखनऊ है। यहां आपको आधुनिकता और पारंपरिकता का संगम देखने को मिल जाएगा। यही वजह है कि लखनऊ में काफी ज्यादा फिल्मों की शूटिंग होती है, क्योंकि यहां सिनिक ब्यूटी बहुत है। इस शहर को बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया है। आशुतोष राणा ने लखनऊ को एक रसीला शहर का नाम दिया।
फिल्म लकीरें में आशुतोष राणा एक वकील की भूमिका निभा रहे हैं। अपनी भूमिका को लेकर उन्होंने कहा कि वकील के पेशे में कभी कभी सत्य को झूठ साबित करना पड़ता है और कभी कभी झूठ को सत्य और कभी-कभी किसी विकट झूठ को सत्य साबित करना पड़ता है। फिल्म में वकील का ये कैरेक्टर काफी इंटरेस्टिंग है।
सवाल- तीन दशक से लगातार आप काम कर रहे हैं। हर स्ट्रीम में आपने काम किया। किस स्टेज पर लगा कि ये बदलाव का स्टेज है।
आज की फिल्मों के जो मेन स्ट्रीम होते हैं उनसे तो मैने अपने फिल्मों शुरुआत की थी। दुश्मन और संघर्ष को उस वक्त की ऑफ बीट सिनेमा माना जाता था। जो आज के दौर की इन बीट है और मेन स्ट्रीम सिनेमा है। हमारी शुरुआत ही प्रतिकूल धाराओं से हुई है। मैनें अपने आप को समय, काल, परिस्थिति के हिसाब से कभी ढालने का प्रयास नहीं किया। ना कभी इस मुगालते में रहा कि हम ये बदलाव करेंगे।
मैने हमेशा ये कोशिश की है कि मेरे हिस्से में आए किरदार को मैं पूरी ईमानदारी और योग्यता से कर पाउं।
बिना जोखिम लिये आप अपने जीवन में कुछ भी मनचाहा प्राप्त नहीं कर सकते। आप या तो वस्ट करिये या तो बेस्ट करिये। आप बीच के कॉम्पटेंसी के उपर मत चलिये। या तो आपको तालियां मिलेंगी या तो आपको बहुत बड़ा फेलियर मिलेगा।
सवाल- इतने सालों में आपको अपना कौन सा कैरेक्टर पसंद है।
फिल्म दुश्मन में गोकुल का कैरेक्टर मेरे लिये काफी पावरफुल रहा। क्योंकि उसमें विलेन एक ऐसा कॉमन मैन है जो हमेशा बरसाती जूते पहने साइकिल से चलता है। जिसकी तरफ कोई पलट कर भी देखना पसंद नहीं करेगा। मतलब की दुश्मन का गोकुल ऐसा कैरेक्टर था जो रजिस्टर करने लायक भी नहीं था। ऐसा व्यक्ति इतना खतरनाक और भयानक हो सकता है ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा।
सवाल- अपनी जिंदगी में आपने सबकुछ कर लिया है और क्या कुछ बाकी है। क्या कुछ नया करने का प्लान है?
योजना बनाने का काम परमात्मा का है। हमारा-आपका काम उसे कार्य के रूप में पर्णित करने का है। मैं अपने जीवन में योजना बनाने की गलती नहीं करता। असल में क्या होता है कि योजना हम बनाने लगते हैं और कार्य के रूप में पर्णित करने का काम उपर वाले को सौंप देते हैं। तो मैं ये मानकर चलता हूं हमसब एक मंच के उपर हैं, सबके अपने अपने-अपने किरदार हैं। सबकी एंट्री और एग्जिट परमपिता परमात्मा ने लिखी है।
हमें नहीं पता की भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है। उन्होंने हमारे लिये योजना बनाई है, लेकिन जो भी छिपा होगा, प्रार्थना ये रहती है कि उसे पूरी क्षमता, शिद्दत के साथ कार्य रूप में सम्पन्न करें। ये सामर्थ्य परमात्मा हमें देते हैं। परमात्मा हमसे प्रेम करते हैं। वो पहले सामर्थ्य देते हैं फिर एजेंडा दे देते है।
सवाल- क्या अगला लक्ष्य राजनीति है?
अभी तो हमारा राजनीति से उतना ही रिश्ता है, जितना एक लोकतांत्रिक देश से एक नागरिक का होता है। राजनीति में जाने का अभी कोई प्लान नहीं है।