Shashi Tharoor: राष्‍ट्रीय संग्रहालय खाली कराने पर शशि थरूर चिंतित, कहा- यह ‘बर्बरता’ है

शशि थरूर ने सोशल मीडिया एप एक्स पर एक पोस्ट की। शशि थरूर ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘अत्यधिक वास्तुशिल्प महत्व की एक ऐतिहासिक इमारत को ध्वस्त कर दिया जाएगा और उसके स्थान पर कुकी-कटर सरकारी भवन बनाया जाएगा!

Shashi Tharoor: राष्‍ट्रीय संग्रहालय खाली कराने पर शशि थरूर चिंतित, कहा- यह ‘बर्बरता’ है

Shashi Tharoor: कांग्रेस नेता शशि थरूर (Congress leader Shashi Tharoor) ने शनिवार को राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum) को खाली करने पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह ‘बर्बरता’ है, शुद्ध और सरल है। शशि थरूर ने सोशल मीडिया एप एक्स पर एक पोस्ट की।

शशि थरूर ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘अत्यधिक वास्तुशिल्प महत्व की एक ऐतिहासिक इमारत को ध्वस्त कर दिया जाएगा और उसके स्थान पर कुकी-कटर सरकारी भवन बनाया जाएगा! और इस बीच कम से कम दो साल तक कोई राष्ट्रीय संग्रहालय नहीं होगा। यह बर्बरता है, शुद्ध व सरल।’

शशि थरूर ने अपने दावों के समर्थन में एक समाचार रिपोर्ट भी शेयर की। वहीं कांग्रेस महासचिव संचार प्रभारी जयराम रमेश (Congress general secretary communication in-charge Jairam Ramesh) ने भी कहा कि, एक और शानदार इमारत, जो पारंपरिकता के साथ आधुनिकता को जोड़ती है, इस साल के अंत तक गायब हो जाएगी।

जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि, एक और राजसी इमारत जो पारंपरिक के साथ आधुनिकता को जोड़ती है, इस साल के अंत तक गायब हो जाएगी। जी.बी. देवलालीकर (G.B. Devlalikar) द्वारा डिजाइन किया गया और दिसंबर 1960 में उद्घाटन किया गया राष्ट्रीय संग्रहालय को ध्वस्त किया जा रहा है। संयोग से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य ब्लॉक को भी डिज़ाइन किया, जो उम्मीद है कि जीवित रहेगा। जयराम रमेश ने आगे कहा कि, राष्ट्र न केवल एक राजसी संरचना खोता है, बल्कि अपने मौजूदा इतिहास का एक टुकड़ा भी खो देता है, जो प्रधानमंत्री के व्यवस्थित उन्मूलन अभियान का लक्ष्य है। इसमें दो से अधिक अमूल्य प्रदर्शनियां हैं और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह राष्ट्रीय खजाना स्थानांतरण से बच जाएगा।

राज्यसभा सांसद जयराम रमेश (Rajya Sabha MP Jairam Ramesh) ने कहा, राष्ट्रीय संग्रहालय का भी एक अद्भुत इतिहास है। इसके पहले निदेशक ग्रेस मॉर्ले (grace morley), एक अमेरिकी संग्रहालय विज्ञानी थी, जो पहली बार भारत आई थीं। वह 1966 तक निदेशक रहीं। 1985 में उन्‍होंने दिल्‍ली में ही आखिरी सांस ली। उन्होंने सभी का सम्मान अर्जित किया और उन्हें माताजी मॉर्ले कहा जाने लगा।