Ayodhya News: अयोध्या पुलिस ने बिहार के 93 बच्चों को कराया मुक्त, 5 मौलवियों से हो रही पूछताछ
सभी 93 बच्चों को अयोध्या से लखनऊ लाया गया है। सबको राजधानी के बाल गृह में रखा गया है। पुलिस ने 5 मौलवियों को हिरासत में ले लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है।
Ayodhya News: बिहार (Bihar) के अररिया (Araria) से यूपी के सहारनपुर (Saharanpur) के देवबंद (Deoband) ले जाए जा रहे 93 बच्चों को शुक्रवार को आजाद करा लिया गया है। इंटेलिजेंस से मिली सूचना पर अयोध्या पुलिस (Ayodhya Police) ने बिहार की प्राइवेट बस को कोतवाली नगर के देवकाली के पास रोककर तलाशी ली और बस चालक, क्लीनर समेत बस में मौजूद मौलवी से पूछताछ की। इसके बाद बच्चों को पुलिस लाइन लाया गया और उनके आधार कार्ड चेक किये गए। सभी 93 बच्चों को अयोध्या से लखनऊ लाया गया है। सबको राजधानी के बाल गृह में रखा गया है। पुलिस ने 5 मौलवियों को हिरासत में ले लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है।
कुछ बच्चों के माता-पिता अयोध्या पहुंचे
पुलिक को शुरुआती जांच में पता चला कि देवबंद में मदरसा संचालक बच्चों को अनाथ बताकर लोगों से फंड जुटाते थे। बच्चों के साथ जानवरों की तरह बर्ताव करते थे। जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने बच्चों के परिजनों के जानकारी दे दी है। कुछ बच्चों के माता-पिता अयोध्या पहुंच भी गए हैं। उनसे हलफनामा लेकर बच्चों को उनके हवाले कर दिया जाएगा।
बच्चों ने रो-रोकर सुनाया अपना दर्द
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी (Dr. Suchita Chaturvedi, member of the State Commission for Protection of Child Rights) और पूर्व सदस्य संगीता शर्मा (Former member Sangeeta Sharma) ने शनिवार को बाल गृह पहुंचकर बच्चों से मुलाकात की। इस दौरान बच्चों ने रो-रोकर अपना दर्द सुनाया।
‘खाने में दाल-चावल ही देते हैं’
बच्चों ने डॉ. शुचिता चतुर्वेदी से कहा कि मुझे मदरसे में नहीं पढ़ना है। यहां पढ़ने से कोई डॉक्टर नहीं बनता है। छोटे-छोटे कमरों में बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंसकर रखा जाता है। एक कमरे में करीब 15-15 बच्चों को भर दिया जाता है। गर्मी में पंखे तक नहीं लगे है। वहीं सर्दियों में रजाइयां भी नहीं मिलती हैं। खाने के नाम पर सिर्फ दाल-चावल ही देते हैं। अच्छा खाना तब ही मिलता जब कोई मेहमान आता है।
बच्चों से ईंटे चढ़वाई जाती हैं
बच्चों ने डॉ. शुचिता चतुर्वेदी को बताया कि हम लोग मदरसा में नहीं पढ़ना चाहते हैं, हमें घर जाना है। जब हम लोग बीमार होते हैं, तो ये लोग डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं। दो दवाएं दान में मिलती हैं वही खिला देते हैं। जबकि, दवा के नाम पर घरवालों से 500 रुपए भी ले लेते हैं। यहां हमारे साथ मजदूरों जैसा बरताव किया जाता है। हमसे मकानों पर ईंटें चढ़वाई जाती हैं।
मदरसा संचालकों ने परिजनों से भी वसूरे रुपए
डॉ. चतुर्वेदी को बच्चों ने आगे बताया कि मदरसा संचालकों ने उनके घरवालों से एक-एक हजार रुपए वसूले हैं। इसके अलावा हर महीने खर्च ने नाम पर परिजन से 500 से 600 रुपए तक लिए जाते हैं। ये रुपए मदरसा संचालक अपनी जेब में रख लेता है। बच्चों को कुछ नहीं दिया जाता है।
मदरसा संचालकों ने लिखवाया हलफनामा
इसके साथ ही बच्चों ने शुचिता चतुर्वेदी से ये भी बताया कि मदरसा संचालकों ने उनके घरवालों से एक हलफनामा लिया था। जिसमें लिखा था कि बच्चे के बीमार होने, कोई हादसा होने, यहां तक मौत हो जाने पर मदरसा संचालक जिम्मेदार नहीं होग, बल्कि परिजन और खुद बच्चे ही जिम्मेदार होंगे।
गांव के सरकारी स्कूलों में भी पढ़ते थे बच्चे
वहीं बच्चों की आपबीती सुनने के बाद डॉ. शुचिता ने बताया कि सहारनपुर में मदारूल उलूम रफीकिया और मदरसा दारे अरकम नाम से 2 नए मदरसे खोले गए हैं। इन 93 बच्चों को इन दोनों मदरसों पर ले जाया जा रहा था। उन्होंने बताया कि जिन 93 बच्चों को बाल गृह लाया गया है, उनके परिवार में 8 से 10 भाई-बहन हैं। वहीं इन बच्चों का अपने-अपने गांवों के सरकारी स्कूलों में भी नाम लिखा है। वे वहां पढ़ने जाते थे। इस दौरान दोनों मरदसों के संचालक बिहार पहुंचे और बच्चों के परिजनों को अपने झांसे में लेकर उन्हें साथ ले जा रहे थे।
2023 में मदरसों में लाए गए थे 84 बच्चें
मदरसों में लगभग 6 से 14 साल की उम्र तक के बच्चे लाए जाते हैं। इससे पहले बिहार के बच्चों को सहारनपुर, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बंगलूरू, औरंगाबाद, और आजमगढ़ के मदरसों में भी भेजा गया है। 2023 में 84 बच्चों को मदरसों में लाया गया था। जिनमें से कई बच्चे मदरसों से भाग गए थे। 93 बच्चों में कई ऐसे हैं जो पहले भी सहारनपुर में देवबंद के मदरसों में जा चुके हैं।
डॉ. शुचिता ने पुलिस को लिखा पत्र
डॉ. शुचिता ने बताया कि अयोध्या पुलिस को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। बच्चों के हलफनामे पर अररिया जिले के करहरा गांव निवासी अनपढ़ शबे नूर (मामू) से अंगूठा लगवाया गया है। शबे नूर से भी पूछताछ की जाएगी। डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि बिहार के अररिया जिले के गांव करहरा निवासी शबे नूर बच्चों को अलग-अलग मदरसों में भेजने का काम करता है। शबे नूर को बच्चे मामू कहते हैं।
बच्चों को अनाथ बताकर ऐंठते थे रुपए
डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि ये मदरसा संचालक लोगों से कहते थे कि ये बच्चे अनाथ हैं। ऐसे में लोग बच्चों की सहायता करने के लिए दान दे देते थे। लेकन मदरसा संचालक दान के पैसे लेकर खुद हजम कर जाते हैं। मदरसा संचालकों ने बच्चों के घरवालों से लिखवाया कि मर भी जाएं तब भी उनकी जिम्मेदारी नहीं। बच्चों को अनाथ बताकर लोगों से दान के रूप में पैसे ऐंठते हैं।