BJP: शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे को नहीं मिली राज्य की कमान, बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व का क्या है प्लान
हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्यों के दो दिग्गज नेताओं यानि शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे का क्या होगा। लंबे समय तक मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले ये दोनों नेताओं को क्या केंद्र में कोई नई जिम्मेदारी दी जाएगी।
BJP: भारतीय जनता पार्टी ने 3 राज्य- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बड़ी जीत हासिल की। इस जीत के साथ ही इन राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चेहरों को लेकर बहुत कयास लगाए गए। माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश की कमान एक बार फिर शिवराज सिंह के हाथों में दी जाएगी, वहीं वसुंधरा राजे को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन ये कयास तब धरे के धरे रह गए, जब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने नए चेरहों को राज्य की जिम्मेदारी सौंपी।
बीजेपी ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश और भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को सीएम बनाया, लेकिन गनीमत रही कि, यहां सीएम फेस की दौड़ में आगे चल रहे दिग्गज रमन सिंह को स्पीकर का पद ही मिल गया। अब उनके पास कोई संवैधानिक पद तो है। लेकिन बीजेपी के दिग्गज वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान सबसे ज्यादा घाटे में रहे। फिलहाल ये दोनों नेता सिर्फ विधायक हैं।
क्या केंद्र में मिलेगी कोई नई जिम्मेदारी
अब सवाल ये उठता है कि हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्यों के दो दिग्गज नेताओं यानि शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे का क्या होगा। लंबे समय तक मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले ये दोनों नेताओं को क्या केंद्र में कोई नई जिम्मेदारी दी जाएगी। इन दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए बीजेपी के पास क्या प्लान है। इस बात को लेकर पार्टी ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिया है। नेताओं का कहना है कि 64 वर्षीय शिवराज चौहान और 70 साल की वसुंधरा राजे की पार्टी में अभी भी खास अहमियत हैं। केंद्रीय नेतृत्व उन्हें पार्टी के अंदर या केंद्र सरकार में मौका दे सकता है। माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें फिर से सांसद का चुनाव लड़ा सकती है और उनके नाम के सहारे राजस्थान और एमपी में खुद को और मजबूत करने की कोशिश कर सकती है।
केंद्र सरकार में रह चुके हैं शिवराज और राजे
बीजेपी के दिग्गज नेता शिवराज 4 बार यानि 18 साल एमपी के मुख्यमंत्री रहे। वसुंधरा दो बार राजस्थान की मुखिया रहीं हैं,वह 2003 से 2008 और फिर 2013 से 2018 तक सीएम रह चुकी हैं। एक समय दोनों भाजपा के स्टार लीडर हुआ करते थे जिन्हें अटल-आडवाणी ने चुना था। वहीं राज्य की सत्ता संभालने से पहले शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा दोनों केंद्र सरकार में रह चुके हैं। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि 2014 में बीजेपी जब सत्ता में आई तो वसुंधरा को केंद्र की राजनीति में आने के लिए कहा गया था, मगर उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।
जब मोदी और शाह मिलकर पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रहे थे, तब वसुंधरा राजस्थान में स्थानीय नेताओं, विधायकों और वफ़ादारों के बीच रहकर राज्य में बीजेपी को संभाल रही थीं। हालांकि 2018 में वसुंधरा राजे ने जब राज्य से सत्ता खो दी थी। तभी बीजेपी ने राज्य में पार्टी के नए नेतृत्व को आगे लाने का फ़ैसला कर लिया था।
‘दिल्ली में कुछ मांगने से पहले मैं मरना बेहतर समझूंगा’
अभी तक शिवराज सिंह चौहान ये कह रहे थे कि वह 2024 की तैयारी में जुट गए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री पद की दावेदारी खत्म होने के बाद उन्होंने कहा कि, दिल्ली जाकर कुछ मांगने से मरना बेहतर है। शिवराज ने ये बात 12 दिसंबर को एक प्रेस कान्फ्रेंस में कही थी। शिवराज ने कहा, “एक बात मैं विनम्रता के साथ कहता हूं कि अपने लिए कुछ मांगने से पहले मैं मरना बेहतर समझूंगा। इसलिए मैंने कहा था कि मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा।
अब सावल ये है कि पांच बार के सांसद, छह बार के विधायक व चार बार सीएम रहे शिवराज और पांच बार सांसद व दो बार सीएम रह चुकी वसुंधरा की आगे की राह क्या होगी। इसका जवाब शायद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ही दे सकता है। ऐसे में संभावना है कि उनकी पॉपुलैरिटी का फायदा उठाते हुए उन्हें जल्द ही कोई नई जिम्मेदारी सौंपी जाए>